वक्त के धरातल पर
जम गई हैं
दर्द की परतें
दल-दल में धंसी है सोच
मृतप्रायः है एहसास
पंक्चर है तन
दिशाहीन है मन
हाडमांस का
पिजरा है मानव
इस तरह हो रहा है
मानव समाज का निर्माण
अब
इसे चरित्रवान कहें
या चरित्रहीन
कोई तो बताए
वो मील का पत्थर
कहाँ से लाएं
जो हमें
"गौतम", "राम", "कृष्ण" की राह दिखाए..?
गुरुवार, जुलाई 23, 2009
आदमी की पीड़ा...
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2 Responzes:
achhi kavita .............
badhaai !
बहुत ही सुन्दर है हाड मांस का पिंजर है हमारा जीवन ......बहुत खुब
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