शनिवार, अगस्त 15, 2009

तुम मुझसे जुदा नहीं...

आज उसने फिर मुझे निराश कर दिया. मैंने उसे कितनी बार कहा है कि तुम मुझसे झूठ मत कहा करो, लेकिन वो मानती ही नहीं. पता नहीं क्यों उसे मुझसे झूठ बोलना बहुत भाता है. मैंने उसे ये भी बहुत बेहतरी से समझाया है कि देखो मैं अपनी ज़िन्दगी की बड़ी से बड़ी कड़वी बात सुन सकता हूँ, सह सकता हूँ लेकिन तुम्हारा एक झूठ मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता. वह कई बार उल्टे मुझसे ही पूंछ बैठती है कि आप ऐसा क्यों कहते रहते हैं..? अरे! इसमें पूछने वाली कोई बात है क्या..? तुम बहुत अच्छे से जानती हो कि मैं ऐसा क्यों कहता हूँ. हम जिस रिश्ते को मजबूती देने जा रहे हैं, उसकी आधारशिला है हम दोनों के बीच विश्वास का होना. अगर हमारे बीच विश्वास नहीं होगा तो हम इस रिश्ते को लेकर दो कदम भी साथ नहीं चल पाएँगे. हमें ज़िन्दगी भर साथ चलना है और अगर संभव हो सका तो ज़िन्दगी के बाद भी साथ-साथ चलेंगे. पर अगर वो मुझसे ऐसे झूठ कहते रहेगी तो मैं कहाँ तक इस रिश्ते को मजबूती दें पाऊंगा..? खैर! मैं उस पर कोई दबाव भी तो नहीं डाल सकता..! ये वो भी बहुत अच्छे से जानती है. न तो मैं कभी उससे ज़बरदस्ती कोई बात कह सकता हूँ. इस बात का भी उसे बहुत अच्छे से पता है. मुझे ये पता है कि वो तभी झूठ बोलती है जब उसमे मेरी कोई बेहतरी जुडी होती है. उसने मुझसे कई बार कहा भी है. मैंने भी उसे बहुत दफा समझाया है कि देखो अगर मेरी अच्छाई के कारण तुम्हें झूठ बोलने के लिए मजबूर होना पड़े या तुम झूठ बोलो तो ये मुझे कतई रास नहीं आएगा. मैं कभी नहीं चाहूँगा कि मेरी भलाई के लिए तुम्हें झूठ का सहर लेना पड़े. लेकिन जब भी वो मेरी भलाई के बारे सोचती है तो उसे मेरी बातों कि भी कोई परवाह नहीं होती. वो वाकई में बेहद मासूम है. तभी तो उसकी मासूमियत मेरी पलकें भिगो देती है. जब कभी उदास होती है और मैं उससे पूछता हूँ कि क्या हुआ? तो झट से आंसू पोंछते हुए बोलेगी - किसे क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं!! मैं बिलकुल ठीक हूँ. जबकि उसे बहुत अच्छे से पट होता है कि मैं ये बहुत अच्छे से जानता हूँ कि मुझे उसकी उदासी कि वज़ह मालूम है. फिर भी वो खुद अपनी जुबान से बोलकर मुझे परेशान नहीं करना चाहती. उसकी इन्ही बातों ने आज मुझे रुला दिया. आज मेरी अंतरात्मा ने मुझसे कहा कि मैं बेहद स्वार्थी हूँ. मैं स्वार्थी हूँ इसलिए क्योंकि वो मेरी ख़ुशी के लिए खुद दुखों के समुन्दर में छलांग देती है. मैं स्वार्थी हूँ क्योंकि ख़ुशी को मेरा पता बताने के लिए वो ग़मों का स्वागत अपनी चौखट पर करती है. मैं स्वार्थी हूँ क्योंकि उसे मेरी ख़ुशी के लिए रोना पड़ता है.क्यों आखिर क्यों..?? वो ऐसा क्यों कर रही है..? वो क्यों मेरे बारे में सोचती है..?? वो ये क्यों नहीं सोचती कि मैं भी उसकी उतनी ही परवाह करता हूँ जितना कि वो मेरा..!!

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