सोमवार, अगस्त 24, 2009

मुझे माफ़ करना...

मैं जानता हूँ मेरी वजह से तुम दुखी हो. तुम ये बात स्वीकार नहीं करोगी लेकिन ये सच है कि कहीं न कहीं मैंने तुम्हें परेशानी में डाल दिया है. ग़लती मेरी है, मुझे तुम्हें मजबूर नहीं करना चाहिए था. मेरी भावनाओं को समझने के लिए तुमने खुद की भावनाओं की कुर्बानी देदी. मुझे ख़ुशी देने के लिए तुमने खुद की खुशियाँ कुर्बान कर दीं. मुझे पता है कि मुझे माफ़ भी नहीं किया जा सकता. मैंने तो झट तुमने माफ़ी मांग ली लेकिन शायद मैं ये भूल गया कि "माफ़ी मांगने से ज्यादा कष्टदायक होता है माफ़ करना!" मैं ये भी जानता हूँ कि तुम दुखी होने के बावजूद भी मेरे बारे में, मेरी ख़ुशी के बारे में ही सोच रही हो. तुम्हारी यही बातें तो मुझे रह-रहकर रुलाती रहती हैं. तुम ऐसी क्यों हो? ऐसा क्यों करती हो तुम? तुम्हें मेरी इतनी चिंता क्यों है? क्यों तुम हमेशा मुझे खुश देखना चाहती हो? ये सवाल अगर मैं तुमसे करुँ तो तुम यही कहोगी न कि "मैं जानता हूँ!" सच भी तो है. मैं जानता हूँ कि तुम ऐसा क्यों करती हो? पर अगर तुम्हारी जगह कोई और होता तो शायद मेरे लिए इतना नहीं करता! करता भी तो वो महज़ एक औपचारिकता होती..! बस! अब और नहीं! बहुत हो चुका! मैं तुम्हें और अधिक दुखी नहीं देख सकता. तुमसे मेरी गुज़ारिश है कि मुझे और कुश रखने की कोशिश मत करो. मैं ये चाहता हूँ कि तुम हमेशा खुश रहो. मेरी चिंता छोड़ दो. मेरे लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण तुम्हारा मेरे लिए चिंता करना है. जब भी मैं ये सोचता हूँ कि तुम मेरे बारे में कितना सोचती हो तो मेरे पास पलकें भिगोने के आलावा और कोई रास्ता नहीं बचता. और हाँ! सबसे अहम् बात : आजतक मेरी वज़ह से जानते हुए या अनजाने में तुम्हें कोई भी हुआ है तो मुझे माफ़ कर देना. मैं जानता हूँ कि मैं तुम्हारे उन दुखों को कम नहीं कर सकता लेकिन मेरी ये कोशिश ज़रूर रहेगी कि आने वाले समय में अब तुम्हें कोई दुःख. कोई परेशानी न हो..!

हमेशा ही तुम्हारा
"राम"

जीने की तमन्ना कौन करे..?

मरने की दुआएँ क्यूँ मांगूँ ,
जीने की तमन्ना कौन करे|
यह दुनिया हो या वह दुनिया,
अब ख्वाहिश-ए-दुनिया कौन करे|

जो आग लगाई थी तुमने,
उसको तो बुझाया अश्कों से|
जो अश्कों ने भड़्काई है,
उस आग को ठन्डा कौन करे|


दुनिया ने हमें छोड़ा जज़्बी,
हम छोड़ न दें क्यूं दुनिया को|
दुनिया को समझ कर बैठे हैं
अब दुनिया दुनिया कौन करे||


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