शुक्रवार, जनवरी 29, 2010

आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार...

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार

लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत

पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम
सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर

जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर

अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास

पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास


चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान



(मैं जब सातवीं कक्षा में था तब मेरे बड़े भैया निदा फ़ाज़ली जी की इस रचना को जगजीत सिंह जी की आवाज़ में ग़ज़ल के रूप में सुना करते थे, उस वक़्त कई बार मैंने भी इसे सुनने और समझने की कोशिश की थी... समझने में परेशानी होती थी, तो लिखकर दोराय करता था... धीरे-धीरे यह ग़ज़ल मैंने रट ली, तब से लेकर अब तक मैंने इसे अपने ज़हन में संजोया हुआ है... अपनी याद को ताज़ा रखने के लिए मैंने इसे अपने ब्लॉग पर संजो लिया है!...)

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