कभी कोई उसे मुसीबत में दिख भी जाता और उससे मदद
बरसात का मौसम था, बच्ची को जोरों से बुखार आया था।
वह बच्ची की बीमारी को दूर करने के लाख कोशिश कर चुका था।
सारे दांव फेल हो चुके थे। वह बहुत घबरा गया और
चरित्र मानव का महल की तरह... गिरेगा लगेगा खंडहर की तरह... जलेगा बरसात में भीगी लकड़ी की तरह... मांगेगा, न मिलेगी मौत, जिंदगी की तरह!..
लेबल: ..?, क्या, जाता, मेरा, है
Writer रामकृष्ण गौतम पर रविवार, जून 07, 2009 2 Responzes इस संदेश के लिए लिंक
लेबल: बेटा, माँ, माँ पर कविता, मेरे लाल
Writer रामकृष्ण गौतम पर रविवार, जून 07, 2009 2 Responzes इस संदेश के लिए लिंक
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