रविवार, जून 07, 2009

मेरा क्या जाता है..?


एक महोदय काफी स्वार्थी प्रवृत्ति के थे।
कभी कोई उसे मुसीबत में दिख भी जाता और उससे मदद
की गुजारिश करता तो वह कहता "मेरा क्या जाता है"
और वहां से चला जाता। ऐसे ही सालों गुज़र गए पर
उसका तकिया कलाम वही रहा। एक दिन वह घर पर अपनी
ग्यारह साल की बच्ची के साथ अकेला था।
बरसात का मौसम था, बच्ची को जोरों से बुखार आया था।
वह बच्ची की बीमारी को दूर करने के लाख कोशिश कर चुका था।
सारे दांव फेल हो चुके थे। वह बहुत घबरा गया और
घबराहट की स्थिति में ही दौड़ा-दौड़ा
अपने पड़ोसी के घर गया। उसने गुजारिश की- गौतम जी!
मेरी बच्ची की हालत काफी ख़राब है कृपया अपनी कार
में हॉस्पिटल ले चलिए। गौतम जी ने बड़ी ही विनम्र और दया की
दृष्टी से उसकी ओर देखा और कहा "मेरा क्या जाता है"
पर तुम्हारी बच्ची की हालत काफी नाज़ुक है और
उसे हो गया तो "तुम्हारा बहुत कुछ चला जाएगा"
यह कहकर गौतम जी ने अपनी कार निकाली
और बच्ची को हॉस्पिटल पहुँचाया।

माँ...


एक महोदय बड़ी गंभीरता के साथ कुछ लिख रहे थे...
अचानक एक पिचहत्तर साल के करीब की बुजुर्ग महाशय के पास आई और बोली -
बेटा! भोजन का समय हो गया है! महाशय ने ध्यान नही दिया...
बुजुर्ग ने फ़िर कहा - मेरे लाल! भोजन ठंडा हो रहा है!
महाशय गुस्से में आ गए और बोले - चुप भी कर ''माँ'',
तेरे आँख फूट गए हैं क्या?
देखती नही कल कोलेज में मेरा लेक्चर है...
"माँ" पर कविता लिख रहा हूँ..!!

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