शनिवार, जनवरी 09, 2010

एक पाती बाबा के नाम...

मैं आज महाराज श्री श्री १००८ बाबा समीरानन्द जी की "चिटठा भविष्यवाणी" 'वर्ष २०१० में आपके चिट्ठे का भविष्य' पढ़ रहा था| पूरी कथा पढ़ी और उसके बाद उस कथा की दक्षिणा देने के लिए "टिप्पणी भवन" में प्रवेश किया... जैसे ही मैं वहां पहुंचा मैंने देखा कि मुझसे पहले ही वहां पच्चीस भक्त मौजूद थे| कुछ अपने सर पर हाथ धरे महाराज जी की कथा का सार समझने में लगे थे तो कुछ  सामने हाथ उनके सामने हाथ जोड़े उपाय बताने की प्रार्थना कर रहे थे। कुछ ने तो महाराज जी के पैर ही पकड़ रखे थे। इस सबके बावजूद भी महाराज अपनी आदत के अनुरूप मुस्कुराए जा रहे थे। वाह! महाराज जी, क्या नज़ारा था वो। आप एकदम अद्भुत नज़र आ रहे थे उस व़क्त। बहरहाल! मैं भी एक किनारे खड़ा हो गया और अपनी दक्षिणा दे दी, ये सोचकर कि मुझ नादान को भी महाराज श्री का बराबर आशीर्वाद मिलेगा। मैंने सोचा कि दक्षिणा देने के साथ हम बच्चों के लिए आश्रम में आरक्षण मांग लूं लेकिन वो मौका सही नहीं था। खैर! इस पोस्टिंग के माध्यम से महाराज श्री से आरक्षण की मांग कर रहा हूं। महाराज जी कृपया मेरी मांग पर अमल करें :






मेरी मांग है कि अपने आश्रम में हम नवोदितों को थोड़ी सी जगह दे दें। हमें केवल स्थान चाहिए, कुटिया का निर्माण हम खुद ही करे लेंगे। कैसे करेंगे और किस तरह का करेंगे ये आप हम पर ही छोड़ दें। बच्चों की पंचायत में क्यों पड़ रहे हैं। महाराज जी, हम इक्कीसवीं सदी के बच्चे हैं, रास्ता खुद ही बना लेंगे। आप तो बस आश्रम में जगह देने वाले एग्रीमेंट पर अपना आशीर्वादरूपी दस्त़खत कर दीजिए बस! फिर देखिए हम आपके सानिध्य में भी रहेंगे और आपका प्रचार भी करेंगे।





आपकी तस्वीर वाली लॉकेट बेचेंगे। आपके प्रवचन के कैसेट, सीडी बगैरह बेचेंगे और तो और आश्रम के विकास के लिए देसी-विदेशी निवेशकों को भी बुलाएंगे।





मैं अन्य तमाम चिट्टाकारों से भी अनुरोध करूंगा कि इस कार्य में वे मेरी सहायता करेंगे। बस आप अपना शुभाषीश दे दीजिए।

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