शुक्रवार, फ़रवरी 13, 2009

राम की राह पर चलें या कृष्ण की राह पर..??


साभार - नीरेंद्र नागर

हिंदू माइथॉलजी में जो दो प्रधान नायक हैं - राम और कृष्ण - उनमें दो मामलों के अलावा एक खास फ़र्क है प्रेम के मामले में उनका रवैया। इस मुद्दे पर दोनों में इतना ज़्यादा अंतर है कि हैरत होती है यह सोचकर करोड़ों हिंदू इन दोनों को एकसाथ कैसे स्वीकार कर पा रहे हैं! राम एकनिष्ठ हैं। सीता के अलावा वह किसी और नारी की ओर नज़र भी नहीं उठाते। सीता का त्याग करने के बाद उन्होंने किसी और से शादी नहीं की और वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि सीता के विरह में उन्होंने कितना कष्ट उठाया। दूसरी तरफ कृष्ण के बारे में माना जाता है कि उनकी 16 हज़ार रानियां थीं और 8 पटरानियां। राधा जो उनकी मामी लगती थीं और जिनसे उनका विशिष्ट प्रेम संबंध था , वह इनसे अलग थीं। अगर यह मान भी लिया जाए कि 16 हज़ार का आंकड़ा कुछ ज़्यादा ही है और कपिल देव की भाषा में यह बात कुछ हज़म नहीं होती , तब भी यह तो कहा ही जा सकता है कि प्रेम के मामले में कृष्ण एक से बंधे नहीं रहे।
इन दोनों नायकों के परस्परविरोधी चरित्रों को एक ही मानने और समझाने की आध्यात्मिक कोशिशों से बचते हुए हम यहां एक ही सवाल करेंगे - क्या राम की एकनिष्ठता ही हर प्रेमी का आदर्श होना चाहिए ? दूसरे शब्दों में वही सवाल - क्या कृष्ण का कई स्त्रियों से प्रेम उनके प्यार को छिछला बना देता है ? इन प्रश्नों का आध्यात्मिक उत्तर हम नहीं खोजेंगे क्योंकि अवतारों का चरित्र विश्लेषण यहां हमारा मकसद नहीं है। कसौटी पर है हमारा मन जो राम को आदर्श और कृष्ण के यथार्थ के बीच झूलता रहता है। आगे बढ़ने से पहले हम एक सवाल का जवाब दे दें। क्या मनुष्य स्वभाव से एकनिष्ठ है ? नहीं है। क्यों नहीं है ? इसलिए नहीं है कि कोई भी इंसान पर्फेक्ट नहीं है। ऐसा कोई नहीं है कि उसमें दुनिया के सारे गुण हों - न आप ऐसे हैं न मैं न कोई और। एक व्यक्ति में कुछ गुण है तो दूसरे में कोई और गुण हैं। इसलिए आपको कभी कोई अच्छा लगता है तो कभी कोई और और इस तरह आप एकसाथ या एक के बाद एक कई लोगों से प्यार करते हैं। हां , यह सही है कि इन सभी से प्यार एक जैसी गहराई से नहीं होता और यह भी मुमकिन हो कि कोई प्रेम संबंध एक पल का हो और कोई उम्र भर का। यह निर्भर करता है उस व्यक्ति के रिस्पॉन्स पर जिसे आप प्यार करते हैं। अगर उसकी प्रतिक्रिया पॉज़िटिव रही तो प्यार परवान चढ़ता है वरना धीरे-धीरे खत्म हो जाता है।
क्यों होता है प्यार ...?
प्रेम आम तौर पर पांच कारणों से होता है - रूप , व्यवहार , गुण , साथ और ***! सभी आपको सुख देते हैं। एक सुंदर चेहरा या बदन आंखों को सुख देता है। कोई अगर कटरीना कैफ का फैन है और उसकी तस्वीरें दीवारों पर लगाता है तो उसका कारण यही है कि कटरीना का सुंदर चेहरा उसे सुख देता है। वह जवाब में कटरीना से डायरेक्टली कुछ नहीं पा रहा , यह अलग बात है लेकिन वह जो दीवानगी शो कर रहा है , वह एक तरह का प्यार ही है। ऑफिस में कुछ शक्लें हमें अच्छी लगती हैं तो इसका मतलब यह कि आप शक्ल के कारण उस व्यक्ति से प्यार करते हैं। इसी तरह राह चलते भी हमें कोई सूरत भली लग जाती है। यह एक लम्हे का प्यार है। अच्छे व्यवहार के कारण भी कोई एक या कई लोग आपको प्यारे लग सकते हैं। आप अपने पति या पत्नी से कितने ही संतुष्ट क्यों न हों लेकिन अगर दफ्तर में कोई कॉलीग आपको बिना किसी स्वार्थ के लंच टाइम में पराठा या इडली शेयर करने का ऑफर दे तो उसके व्यवहार के आकर्षण को आप किस तरह नकार पाएंगे ? उसका ऑफर बताता है कि उसे आपका साथ प्रिय है , वह आपको खुश करना चाहता/चाहती है , और इसीलिए वह आपको कुछ दे रहा/रही है।
अब अगर आप भी एक सेंसिटिव व्यक्ति हैं तो आप भी उसे कुछ देंगे ही। यह देना एक कप स्पेशल चाय के रूप में हो सकता है। लेकिन एक बात यहां ध्यान देने की है - अगर यह देना सिर्फ कर्ज़ उतारने के लिए है तो यह एक सौदा होगा। परंतु यदि आप उसकी भावना की कद्र करते हुए उसे चाय पर बुलाते हैं तो आप मानें या न मानें , आपको उससे प्यार हो गया है। गुण की वजह से भी प्यार हो सकता है बशर्ते आपको उस गुण की कद्र हो। और अगर वह गुण ऐसा हो जो आपके जीवनसाथी में नहीं है तो यह बहुत ही तगड़ा आधार बन सकता है एक्स्ट्रा-मैरिटल प्रेम का। किसी का पति अगर रात को शराब पीकर आता हो , गाली-गलौज करता हो , पत्नी और बच्चों को पीटता हो , तो वह परेशान स्त्री पड़ोस में रहनेवाले उस सज्जन पुरुष को क्यों नहीं सराहेगी जो वक्त पर घर आता हो और पत्नी और बच्चों के साथ घूमने निकलता हो ! साथ रहने से भी आत्मीयता पैदा होती है। शादी के बाद साथ रहते-रहते जो प्रेम उत्पन्न होता है , उसका एक बड़ा कारण साथ रहना भी है। वैसे साथ रहना जहां प्रेम को जन्म देता है , वहीं वह रिश्ते में उकताहट का कारण भी है। प्रेम इस वजह से कि बहुत-कुछ मिल रहा है और बोरियत इस वजह से कि नया कुछ नहीं मिल रहा है। *** के कारण आकर्षण के बारे में ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। यह ज़्यादा तीव्र होता है क्योंकि इसके साथ बायलॉजिकल कारण जुड़े रहते हैं। लेकिन इसे हम केवल देह का मामला नहीं मान सकते। यह पूरी तरह व्यक्ति से जुड़ा है वरना इंसान प्रेम किसी से करता , *** किसी और से। ऐसा अक्सर नहीं होता। और जहां होता है , वहां हम इसे प्यार नहीं मानते। किसी में नहीं हैं सारी खासियतें प्रेम इन पांच में से किसी एक या एक से ज़्यादा कारणों से हो सकता है। किसी से हम व्यवहार के कारण प्यार कर सकते हैं तो किसी से गुणों के कारण और किसी से रूप के कारण। किसी में गुण और व्यवहार दोनों ही प्यार का कारण बन सकते हैं। लेकिन ये सारे प्यार कितने टिकाऊ होंगे , यह इस पर भी निर्भर करता है कि जिसे या जिन्हें आप प्यार करते हैं , उसे या उन्हें आपमें प्यार करने के कौनसे और कितने कारण मिलते हैं। जैसे आपको कोई किसी कारण अच्छा लग सकता है लेकिन यह भी तो ज़रूरी है कि उसे या उन्हें भी आप अच्छे / अच्छी लगें। तभी मामला जमता है वरना एकतरफा प्यार ज़्यादा दिन नहीं चलता और वह किसी और विकल्प ढूंढने में लग जाता है। कॉलीग के लंच शेयर करने का उदाहरण फिर उठाते हैं। अगर वह सहकर्मी अगले दिन किसी और के सामने वही प्रस्ताव करे तो आपका यह भ्रम टूटता है कि उसे आपका ही साथ प्रिय था। पता चलता है कि उसे साथ देने के लिए कोई व्यक्ति चाहिए था - कल आप थे , आज कोई और है। यानी उसने अपनी ज़रूरत पूरी की।
ऐसे में आप (1) किसी और टिफिन शेयर करनेवाले / वाली को ढूंढें , ( 2) अपने कॉम्पिटिटर्स से जलते रहें , ( 3) यह मान ले कि वह प्रेम करने योग्य है ही नहीं क्योंकि उसका यह व्यवहार एक्सक्लूसिवली आपके लिए नहीं है। प्रेम के लिए ज़रूरी है यह एहसास कि मुझमें कुछ खूबियां हैं जिसके कारण लाखों की भीड़ में मुझे चाहा जा रहा है। लेकिन गड़बड़ी यहीं से शुरू होती है। इंसान यह नहीं सोचता कि उसमें कुछ खासियतें हैं न कि सभी खासियतें। किसी एक खासियत के चलते यदि आपसे प्रेम किया जा सकता है तो किसी और खासियत के कारण किसी और से भी। एक लड़की एक साथ दो या तीन लड़कों से प्रेम कर सकती है अगर उसे उन तीनों के प्यार करने लायक अलग-अलग खूबियां मिलें। अगर वह लड़की भी उन तीनों से बराबर प्यार पाए तो उससे सुखी इंसान दुनिया में कोई नहीं है। लेकिन वे तीनों लड़के जो उस लड़की को प्यार कर रहे हैं , उसका पूरा प्यार नहीं पा रहे और यही उनकी ईर्ष्या का कारण बनाता है। एक से ज़्यादा लोगों से प्रेम के मामले में दिक्कत यह है कि यह गणित के नियम को मानता है। प्रेम ज्ञान की तरह बांटने से बढ़ता नहीं। यहा जितना बांटो , उतना घटेगा वाला नियम चलता है।
क्या प्यार मापने का कोई पैमाना है ? प्यार बंटने का मतलब क्या है ? क्या कोई ऐसा पैमाना है जिससे प्यार को मापा जा सके ? बिल्कुल है। और वह यह कि जो कुछ आपके पास है , उसका कितना हिस्सा आप अपने प्रिय को देने के लिए तैयार हैं। जैसे आपके पास 24 घंटे हैं - इनमें से कितने घंटे या मिनट आप अपने प्रिय के बारे में सोचने में खर्च करते हैं या कितना वक्त उसके साथ गुज़ारते हैं या गुज़ारने को तैयार हैं। आपके पास पैसा है - उसका कितना हिस्सा बिना किसी टेंशन के उसके लिए खर्च करने को तैयार हैं। आपका समाज में नाम है , इज़्ज़त है - आप अपने लवर के लिए किस हद तक उस इज़्ज़त को दांव पर लगाने को तैयार हो जाता हैं। जब आपका प्यार बंटता है तो कहने का मतलब यही है कि आपका वक्त बंटता है , आपका खर्च बंटता है , आपकी चिंताएं बंटती हैं। यदि आप किसी एक से ही प्यार करते हैं तो अपने वक्त , दौलत , चिंता का सारा खज़ाना उसी एक पर उड़ेल देते हैं। यदि आप दो या तीन लोगों से प्यार करते हैं तो सभी के हिस्से में आपका थोड़ा-थोड़ा वक्त , दौलत और चिंता आएगी। इसी कारण ऐसे रिश्ते गड़बड़ा जाते हैं जहां किसी रिलेशनशिप में पार्टनर A एकाधिक प्रेम का कृष्ण सिद्धांत अपना रहा है और पार्टनर B एकनिष्ठता का राम सिद्धांत। क्योंकि पार्टनर A - B और C का पूरा-पूरा प्यार पा रहा है लेकिन B और C को A का आधा-आधा प्यार ही मिल रहा है। मैथ की भाषा में A 100 यूनिट प्यार बांट कर 200 यूनिट प्यार पा रहा है जबकि B और C 100-100 यूनिट प्यार देकर 50-50 यूनिट प्यार पा रहे हैं। साफ है कि एक ही व्यक्ति को अपना सारा प्यार देनेवाले घाटे में रहे। अगर B और C भी A के अलावा किसी D या E से प्यार करते तो उनके जीवन में यह कमी नहीं रहती।
इस गड़बड़ी को आम घर-परिवार के खांचे में भी समझा जा सकता है जहां नई बहू आई है। पति अपनी मां , भाई , बहन , पिता आदि सबसे प्रेम करता है इसलिए पत्नी के हिस्से में पति का सेंट-परसेंट प्यार नहीं आता। दूसरी ओर पत्नी अपना सौ फीसदी प्यार पति पर ही बरसाती है क्योंकि घर के बाकी लोगों से उसके आत्मीय संबंध इतनी जल्दी पनप नहीं सकते। ऐसे में पत्नी घाटे में रहती है और वह पति से शिकायत भी करती रहती है कि जितना प्यार वह पति से करती है , उतना वह पा नहीं रही। दूसरी ओर अगर पति अपना सारा प्यार (चिंता , पैसा , वक्त) पत्नी पर ही निछावर कर दे तो मां , बहन , भाई और पिता को प्रॉब्लम होने लगती है क्योंकि उनके हिस्से का प्यार (चिंता , पैसा , वक्त) कम हो गया। इसी कारण संयुक्त परिवार में नई बहू के आते ही टेंशन उत्पन्न होने लगता है। लैला को भुलाया जा सकता है बशर्ते ... एकाधिक प्यार की थियरी से ही निकलता है सही विकल्प का सिद्धांत। इसे समझने के लिए एक उदाहरण की मदद लें। आपको पुलाव पसंद है लेकिन किसी कारण वह आपको नहीं मिल सकता। तो आप क्या करेंगे - परांठे खा लेंगे बशर्ते परांठों से आपको परहेज़ नहीं है। ज़्यादा भूख लगी हो तो परहेज़ को भी तोड़ देंगे या फुल्के खा लेंगे। प्रेम के मामले में भी ऐसा ही है। जिससे प्रेम हो , उसी स्तर का व्यक्ति अगर मिल जाए तो पहलेवाले को भूला जा सकता है। बल्कि उससे कम स्तर का व्यक्ति भी मिले तो उसे चाहा जा सकता है जैसे पुलाव की जगह रोटी से भूख मिटाई जा सकती है। चूंकि प्रेम एक भावना है जो ‘ कोई मेरा और मैं किसी का / की ’ का एहसास कराती है , इसलिए कोई और किसी का रूप बदलने से भावना नहीं बदलती - उसी तरह जैसे एक ही क्वॉलिटी के खाने के आयटम बदलने से भूख का चरित्र और स्वाद का आनंद नहीं बदलता।
प्रेम भी मानसिक भूख ही है। हां , अगर जिसे खोया और जिसे पाया , उन दोनों में स्तर का फर्क हो तो एक अभाव रह जाता है। जैसे एक युवक किसी सुंदर लड़की से प्यार करता था जिसे वह नहीं पा सका। उस लड़की में बाकी जो गुण थे , वे किसी और लड़की में भी थे , बस वह उतनी सुंदर नहीं थी। ऐसे में दूसरी लड़की से शादी करके वह खुश तो रहेगा लेकिन सुंदरता की चाहत पूरी न होने के कारण उसके मन में एक अभाव रहेगा। उस अभाव को पूरा करने के लिए वह आसपास की सुंदर शक्लों को देखकर अपनी प्यास बुझाएगा। कहने का मतलब यह कि अगर मजनूं को लैला जैसी या उससे कमतर प्रेमिका मिल जाती जो उससे उतना ही प्यार करती जितना लैला करती थी तो मजनूं लैला के बगैर भी जी लेता , और उतने ही सुख से जीता।

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