रविवार, जनवरी 25, 2009

मौत से ठन गई!

कहते हैं न कि ℓιƒє ιѕ тнє ρєямιѕѕιση тσ кησω ∂єαтн●•∙
बस... यही सोचते-सोचते एक दिन मैं मौत को ढूँढने चल पड़ा,
कि अचानक मुझे पंडित अटल बिहारी बाजपेयी जी की ये
कविता मिल गई और मैं बिना देर लगाए
इसे अपने ब्लॉग में समा बैठा!
आप भी पढ़ें और देखें किइन पंक्तियों में
कितनी सत्यता और सार्थकता है...

ठन गई! मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
किसी मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है?
दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला,
आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया,
मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा,
कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव,
चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर,
ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई,
रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का,
तेवरी तन गई।
मौत से ठन गयी!! मौत से ठन गयी!!

देश की तस्वीर इनकी नज़र में...

साभार:-गायत्री शर्मा
वर्ष 2008 देश के लिए एक ऐसा निर्णायक वर्ष रहा, जब देश ने कई आतंकवादी धमाकों व राजनीतिक उलटफेर के रूप में कई आघात सहे परंतु इतने पर भी यह देश अपने संस्कारों व अपने जज्बे के कारण उसी हौसले से खड़ा रहा। इस दौर ने देश को जनतंत्र की एक ऐसी आवाज दी, जो शायद कहीं गुम हो चुकी थी। हर व्यक्ति ऊँच-नीच, जाति-पाति के भेदभाव को भुलाकर केवल और केवल अपने देश के बारे में सोच रहा था। इन धमाकों में हमने बहुत कुछ खोया परंतु जो पाया वह शायद खरे सोने के समान शुद्ध था और वह था देशप्रेम का जज्बा, जो हर भारतीय को अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने को झकझोर रहा था। यदि हम इस वर्ष के मुद्दों की बात करें तो इस वर्ष आतंकवाद, आसमान छूती महँगाई, शेयर बाजार की गिरावट व भ्रष्ट राजनीति बहस का मुद्दा बनकर सुर्खियों में छाए रहे। वहीं दूसरी ओर देश की लाज बचाई उन जाँबाजों, धुरंदर खिलाडि़यों तथा कलाकारों ने दुनिया के नक्शे पर भार‍त का नाम रोशन किया। इन सभी ज्वलंत मुद्दों के संदर्भ में हमने 'वर्ष 2008 का आकलन' विषय पर देश की कुछ ख्यातनाम हस्तियों से चर्चा की तो उनका इस विषय में ये कहना था -
वर्तिका नंदा (देश की प्रख्यात युवा पत्रकार) :- मैं मानती हूँ कि हमारे देश के लिए यह वर्ष खट्टा-मीठा और नासमझीभरा रहा। इस वर्ष चर्चा का विषय बने 'आतंकवाद' ने जहाँ लोगों को संगठित होने की शिक्षा दी, वहीं आतंकवादियों के खात्मे ने हमारे होंठों पर जीत की खुशी भी दर्ज कराई। इन हमलों के पूर्व देश में जो सांप्रदायिक मतभेद गहराने लगा था वह सभी आतंकवाद की आड़ में गुम हो गया। लोगों का विरोध खुलकर सामने आया। इन हमलों में किसी हिन्दू या मुस्लिम को चुनकर नहीं मारा गया, बल्कि आम भारतीय को मारा गया। इस वर्ष की एक बहुत अच्छी उपलब्धि यह रही कि कल तक आमजन का पुलिस पर से जो विश्वास उठ गया था तथा जिस खाकी वर्दी को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता था, अब वह कौम सम्मान की अधिकारी बन गई है। आज मुसीबत के वक्त यही पुलिसकर्मी हमारे काम आए न कि कोई राजनेता। मेरे अनुसार पिछले बीस-बाईस सालों में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि जनता ने सार्वजनिक स्थानों पर खुलकर विरोध प्रदर्शन किया हो। इस वर्ष पहली बार लोगों ने सिरफिरे राजनेताओं को सबक सिखाया। जिस तरह से इन धमाकों में हमारे पुलिस के कई जवान मारे गए, वह बेहद ही दु:ख की बात है। हेमंत करकरे की पत्नी का मीडिया को दिया गया बयान हो या उन्नीकृष्णन के पिता का मुख्यमंत्री को जवाब देने का ढंग, सभी हमारी सच्चाई व ताकत के परिचायक हैं। इस वर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि इस वर्ष हमने सच को कहना, अपनी गलती स्वीकारना व अपना पक्ष रखना सीखा।
पिछले बीस-बाईस सालों में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि जनता ने सार्वजनिक स्थानों पर खुलकर विरोध प्रदर्शन किया हो। इस वर्ष पहली बार लोगों ने सिरफिरे राजनेताओं को सबक सिखाया।
कुलदीप नैयर (देश के जाने-माने स्तंभकार) :- 'मैं मानता हूँ कि वर्ष 2008 देश के लिए अच्छा रहा। इस वर्ष हमें चुनौतियाँ मिलीं, जिनसे हमने बहुत कुछ सीखा। यह इसी सीख का परिणाम था कि बहुत सालों बाद सार्वजनिक स्थानों पर देशवासियों की एकता देखने को मिली। मैं बहुत अरसे से कोशिश कर रहा हूँ कि भारत और पाकिस्तान के संबंधों में सुधार आए। अब तक इस संबंध में जो भी कोशिशें की गई थीं, इन धमाकों ने उन सब कोशिशों पर पानी फेर दिया। मुझे इस वर्ष एक रिपोर्ट पढ़कर बहुत बुरा लगा कि आज भी देश में गरीबी और महँगाई व्याप्त है। आज भी हमारे देश के 77 प्रतिशत लोग केवल 2 डॉलर पर जीते हैं। आखिर हमें इस गरीबी व महँगाई से कब मुक्ति मिलेगी?
चित्रा मुद्‍गल (देश की ख्यातनाम लेखिका व समाजसेविका) :- मैं हर चीज को बड़ी ही सकारात्मक दृष्टि से देखती हूँ। आतंकवाद एक चुनौती थी, जिसे इस देश के जनतंत्र ने बड़े ही साहसिक रूप में लिया है। मैं आतंकवाद से भी काफी बड़ी चुनौती महँगाई को मानती हूँ क्योंकि पेट की भूख हर किसी को सताती है तथा इस भूख ने इस बार भी कई लोगों को मौत की नींद सुला दिया। आज भी आलू इस देश में बड़ी मात्रा में पैदा होता है परंतु यहीं पर यह आलू 5 रुपए किलो बिकने के बजाय 15 से 20 रुपए किलो के महँगे दामों पर बिकता है, आखिर क्यों? आखिर क्यों सरकार इसके लिए कोई गाइड लाइन तय नहीं करती?
आज जिस तरह से समाज व देश में असंतुलन की स्थिति है वह बेहद ही चिंताजनक है क्योंकि किसी भी प्रकार का असंतुलन होने पर हम कभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाएँगे।
मुझे लगता है कि यदि सरकार दामों के संबंध में एक गाइड लाइन तय कर दे तो शायद इस आसमान छूती महँगाई पर कुछ हद तक अंकुश लग सकता है। बचपन में हमने स्कूल में पढ़ा था कि भारत एक कृषिप्रधान देश है तब हमने यह नहीं सोचा था कि कल को यहाँ की ही जनता में अनाज के लिए त्राहि-त्राहि मचेगी। आज हमारे देश का माल देश में कम तथा विदेशों में अधिक बेचा जाता है। आज अमीर हो या गरीब हर व्यक्ति अपने पेट की भूख को शांत करने के लिए कमाता है। सरकार को चाहिए कि वह इस दिन-ब-दिन बढ़ती महँगाई पर अंकुश लगाए और देश को विकास की चरम सीमा पर ले जाए। आज महँगाई का तेजी से बढ़ना व नागरिक सुरक्षा के औसत का घटना बेहद ही चिंताजनक विषय है। यह देश हम सभी का है। यह किसी हिन्दू या मुस्लिम का नहीं है। वर्तमान में तुष्टीकरण को लेकर जो भी असंतोष उभर रहा है वह गुब्बारे में सूई की तरह चुभ रहा है। वर्तमान में देश की कानून-व्यवस्था बिगड़ने के जिम्मेदार केवल और केवल इस देश के राजनेता हैं, जो सत्ता की शह और मात में देशवासियों की मासूम जिंदगियों से खेल रहे हैं।
शोवना नारायणन (देश की मशहूर कथक नृत्यांगना) :- हर वर्ष चुनौतियों को लेकर लाता है। वर्ष 2008 भी चुनौतियों से ही भरा था। आज व्यक्ति सोचने पर मजबूर है कि इस देश में आखिर ये क्या हो रहा है? आखिर हम क्या चाह रहे हैं? अब हर व्यक्ति को गंभीरता से इस बारे में सोचना ही होगा क्योंकि व्यक्ति से ही समाज बनता है और समाज से ही कोई देश बनता है। आज जिस तरह से समाज व देश में असंतुलन की स्थिति है वह बेहद ही चिंताजनक है क्योंकि किसी भी प्रकार का असंतुलन होने पर हम कभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाएँगे। निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो अब हमें गंभीरता से यह सोचना चाहिए कि हमें किस राह पर चलना है। हमें मुश्किलों का बहुत ही संजीदा ढंग से हल निकालकर उसका सामना करना चाहिए। मुश्किलें तो आती रहेंगी, उनसे घबराना कायरता होगी। आज हम सभी को इंसानियत व इस देश के बारे में सोचना होगा।

रामकृष्ण गौतम (एक अदना सा युवक) :- देश की असली तस्वीर देश के प्रधानमंत्री "मनमोहन सिंह" की "बाइपास सर्जरी" है...!!!

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