माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
दिखती है जब कोई औरत..।
घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर
हाथों में डलिया लिए
आँचल से ढँके अपना सर
माँ मुझे तेरी याद आ जाती है..।
मेरी माँ की तरह
उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
क्यों, आख़िर क्यों ?
क्या पक्षियों का कलरव
झूठमूठ ही बहलाता है हमें ..?
शुक्रवार, जून 12, 2009
माँ तुम हो या मेरा भ्रम है..?
लेबल: उमर, दलीय, प्लेटफार्म, भ्रम(झूटमूठ), माँ, याद
Writer रामकृष्ण गौतम पर शुक्रवार, जून 12, 2009 3 Responzes
अपने हाथों से पिलाया कीजिए...
इस तरह हर ग़म भुलाया कीजिये
रोज़ मैख़ाने में आया कीजिये
छोड़ भी दीजिये तकल्लुफ़ शेख़ जी
जब भी आयें पी के जाया कीजिये
ज़िंदगी भर फिर न उतेरेगा नशा
इन शराबों में नहाया कीजिये
ऐ हसीनों ये गुज़ारिश है मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिये
"हसरत जयपुरी"
लेबल: ग़म, तक़ल्लुफ़, मैखाना, शेखजी
Writer रामकृष्ण गौतम पर शुक्रवार, जून 12, 2009 8 Responzes
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