ऐ मेरे हमनशीं
चल कहीं और चल
इस चमन में
हमारा गुज़ारा नहीं
बात होती गुलों तक
तो सह लेते हम
अब तो काँटों पे भी
हक हमारा नहीं
आज आए हो और
कल चले जाओगे
ये मोहब्बत को मेरी
गंवारा नहीं
उम्र भर का सहारा
बनो तो बनो
चार दिन का सहारा
सहारा नहीं
है मुझे ये यकीं
हम मिलेंगे
किसी न किसी
मोड पर
राहें गुलशन में होंगी
सदा ही खुली
वो यक़ीनन सुनेगा
दुआएं मेरी
क्या ख़ुदा है तुम्हारा
हमारा नहीं..!
मंगलवार, सितंबर 15, 2009
उम्र भर का सहारा बनो तो बनो...
Writer रामकृष्ण गौतम पर मंगलवार, सितंबर 15, 2009 64 Responzes
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