एक दिन लोगों कि बदलती वेशभूषा देखकर मैंने माँ से कहा- माँ! हम लोग ऐसे क्यों होते जा रहे हैं? माँ ने उत्तर दिया- बेटे! हम लोग सभ्यता की ओर जा रहे हैं!
सोमवार, जून 15, 2009
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चरित्र मानव का महल की तरह... गिरेगा लगेगा खंडहर की तरह... जलेगा बरसात में भीगी लकड़ी की तरह... मांगेगा, न मिलेगी मौत, जिंदगी की तरह!..
Writer रामकृष्ण गौतम पर सोमवार, जून 15, 2009 6 Responzes इस संदेश के लिए लिंक
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