न आरजू है न तमन्ना है कोई।
अब इस दिल को दिल मिल गया कोई॥
इंतज़ार था सदियों का मेरे जीवन में।
उसे एक झटके में पूरा कर गया कोई॥
अक्सर सोचता रहता था मैं तन्हाई में।
मैं तन्हा क्यों हूँ, मुझे आज तक क्यों नही मिला कोई॥
वो क्या आई ज़िन्दगी में फूल खिल गए लाखों।
सूखे बाग़ में एक प्यार का पौधा लगा गया कोई॥
अब अगर ये सपना है तो ये सदा रहे मेरा।
जो भी हो पर प्यार का मुझे खाब दिखा गया कोई॥
आज इस दिल की धडकनों को धड़कना सिखा गया कोई॥
मेरी आंखों में मोहब्बत के प्यारे ख्वाब सज़ा गया कोई॥
रविवार, जुलाई 26, 2009
अब न आरजू है, न तमन्ना है कोई...
लेबल: आरजू, ख्वाब, तमन्ना, मोहब्बत
Writer रामकृष्ण गौतम पर रविवार, जुलाई 26, 2009 6 Responzes
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