- "जिंदगी!" सुनने में यह शब्द बहुत ही कर्णप्रिय लगता है,
- पर कभी सोचा है की ये "जिंदगी" है क्या..?
- किसे कहते है "जिंदगी"..?
- हाँ! पहले कुछ बुद्धिजीविओं की इसके बारे में परिभाषाएं
- ज़रूर पढ़ी है... उनके मुताबिक "जिंदगी" एक संघर्ष है...
- "जिंदगी" कुछ कर दिखने का नाम है...
- "जिंदगी" खुलकर जीने को कहते हैं... वगैरह, वगैरह!
- पर सही मायनों में "जिंदगी" की परिभाषा इनमे से कुछ भी नही है...
- ये मैं नही कह रहा हूँ और न ही इतनी बड़ी बात कहने की मुझमे क्षमता है,
- ये मेरा अब तक का निष्कर्ष कहता है!
- मैंने अपनी बाईससाल की "जिंदगी" में ऐसे कई उदाहरण देखे हैं॥
- जिनसे मैने यह निष्कर्ष निकाला है! वैसे इस निष्कर्ष के बाद भी मुझे कई ऐसे
- उदाहरण देखने को मिले हैं, जिनसे मैं एक और निष्कर्ष पर पहुँचा!
- और वो यह है "जिंदगी" न तो कोई जंग है और ही कोई संघर्ष!
- "जिंदगी" एक कहानी है और हम उसके पात्र ! कोई माँ के किरदार में है
- तो कोई पिता के, कोई भाई बना है तो कोई दोस्त!
- किसी ने पत्नी की भूमिका में है तो कोई बेटा या बेटी के रोल में!
- सबके डायलौग भी फिक्स हैं!
- जिसे विलेन का किरदार मिला है उसका संवाद निगेटिव है और जो हीरो है या
- हीरो के सहायक हैं उनका संवाद ऐसा है जो दर्शकों को पसंद आए!
- बाकि सब तो ठीक है पर दर्शक कौन हैं...?
- दर्शक! दर्शक भी हम में से ही होते हैं...
- कुछ दर्शक हीरो के पक्ष में होते हैं तो कुछ विलेन के!
- कहानी चलती रहती है और एक वक्त ऐसा आता है जब कहानी अपने अन्तिम
- स्टेप की ओर यानी पूर्णता की ओर अग्रसर होती है...
- अब शुरू होता है कहानी का क्लाईमेक्स...
- बेटे को पिता की याद आती है... माँ अपने बेटे को पहचानती है और
- पत्नी को पति की याद आती है...
- बस! इन्ही सारी बातों के इर्द-गिर्द घूमती "जिंदगी" की कहानी ख़त्म हो जाती है...
- और फ़िर शुरू होता है एक नया अध्याय "जिंदगी" का...!!!
शनिवार, फ़रवरी 21, 2009
जिंदगी, जिंदगी!!
लेबल: "जिंदगी", अंत, कहानी, किरदार, पात्र
Writer रामकृष्ण गौतम पर शनिवार, फ़रवरी 21, 2009 5 Responzes
सदस्यता लें
संदेश (Atom)