शनिवार, फ़रवरी 21, 2009

जिंदगी, जिंदगी!!

  • "जिंदगी!" सुनने में यह शब्द बहुत ही कर्णप्रिय लगता है,
  • पर कभी सोचा है की ये "जिंदगी" है क्या..?
  • किसे कहते है "जिंदगी"..?
  • हाँ! पहले कुछ बुद्धिजीविओं की इसके बारे में परिभाषाएं
  • ज़रूर पढ़ी है... उनके मुताबिक "जिंदगी" एक संघर्ष है...
  • "जिंदगी" कुछ कर दिखने का नाम है...
  • "जिंदगी" खुलकर जीने को कहते हैं... वगैरह, वगैरह!
  • पर सही मायनों में "जिंदगी" की परिभाषा इनमे से कुछ भी नही है...
  • ये मैं नही कह रहा हूँ और न ही इतनी बड़ी बात कहने की मुझमे क्षमता है,
  • ये मेरा अब तक का निष्कर्ष कहता है!
  • मैंने अपनी बाईससाल की "जिंदगी" में ऐसे कई उदाहरण देखे हैं॥
  • जिनसे मैने यह निष्कर्ष निकाला है! वैसे इस निष्कर्ष के बाद भी मुझे कई ऐसे
  • उदाहरण देखने को मिले हैं, जिनसे मैं एक और निष्कर्ष पर पहुँचा!
  • और वो यह है "जिंदगी" न तो कोई जंग है और ही कोई संघर्ष!
  • "जिंदगी" एक कहानी है और हम उसके पात्र ! कोई माँ के किरदार में है
  • तो कोई पिता के, कोई भाई बना है तो कोई दोस्त!
  • किसी ने पत्नी की भूमिका में है तो कोई बेटा या बेटी के रोल में!
  • सबके डायलौग भी फिक्स हैं!
  • जिसे विलेन का किरदार मिला है उसका संवाद निगेटिव है और जो हीरो है या
  • हीरो के सहायक हैं उनका संवाद ऐसा है जो दर्शकों को पसंद आए!
  • बाकि सब तो ठीक है पर दर्शक कौन हैं...?
  • दर्शक! दर्शक भी हम में से ही होते हैं...
  • कुछ दर्शक हीरो के पक्ष में होते हैं तो कुछ विलेन के!
  • कहानी चलती रहती है और एक वक्त ऐसा आता है जब कहानी अपने अन्तिम
  • स्टेप की ओर यानी पूर्णता की ओर अग्रसर होती है...
  • अब शुरू होता है कहानी का क्लाईमेक्स...
  • बेटे को पिता की याद आती है... माँ अपने बेटे को पहचानती है और
  • पत्नी को पति की याद आती है...
  • बस! इन्ही सारी बातों के इर्द-गिर्द घूमती "जिंदगी" की कहानी ख़त्म हो जाती है...
  • और फ़िर शुरू होता है एक नया अध्याय "जिंदगी" का...!!!

LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

Blogspot Templates by Isnaini Dot Com. Powered by Blogger and Supported by Best Architectural Homes