मरने की दुआएँ क्यूँ मांगूँ ,
जीने की तमन्ना कौन करे|
यह दुनिया हो या वह दुनिया,
अब ख्वाहिश-ए-दुनिया कौन करे|
जो आग लगाई थी तुमने,
उसको तो बुझाया अश्कों से|
जो अश्कों ने भड़्काई है,
उस आग को ठन्डा कौन करे|
दुनिया ने हमें छोड़ा जज़्बी,
हम छोड़ न दें क्यूं दुनिया को|
दुनिया को समझ कर बैठे हैं
अब दुनिया दुनिया कौन करे||
सोमवार, अगस्त 24, 2009
जीने की तमन्ना कौन करे..?
रचनाकार: मुईन अहसन जज़्बी
Writer रामकृष्ण गौतम पर सोमवार, अगस्त 24, 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
3 Responzes:
बेहतरीन लिख रहे हो, रामकृष्ण. लिखते रहो!
रचना अच्छी लगी। मौत भी शायराना चाहता हूँ- यह अंदाज भी पसन्द आया।
bahut hi achhi rachna..
-Sheena
एक टिप्पणी भेजें