शनिवार, जुलाई 25, 2009

कुछ कम है...

ज़िन्दगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है.
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है..

घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है.
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है..

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी.
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है..

अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में.
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है..

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब.
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है..


रचनाकार: शहरयार

5 Responzes:

ओम आर्य ने कहा…

bahut hi khub kahi hai aapane badhai

रामकृष्ण गौतम ने कहा…

OM ji bahut khoob mujhe nahi, SHAHARYAR saab ko kahiye. Rachna unhi ki hai. Maine to mahaz apne BLOG ki shobha Badhai hai. Dhanyavaad!

संगीता पुरी ने कहा…

सुंदर रचना प्रेषित करने के लिए धन्‍यवाद !!

बेनामी ने कहा…

कुछ कम और कुछ ज़्यादा,
हमे लगता है,
पर सच तो यह है,
जिसके पास जितना भी है,
वो ही कम है...

रामकृष्ण गौतम ने कहा…

Thanx NIDHI ji...

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