रुखसत हुआ वो बाप से लेकर खुदा का नाम।
राह-ए-वफ़ा की मन्ज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम॥
मन्ज़ूर था जो माँ की ज़ियारत का इंतज़ाम।
दामन से अश्क पोंछ के दिल से किया कलाम॥!॥
रचनाकार - पं ब्रजनारायण ’चकबस्त’
चरित्र मानव का महल की तरह... गिरेगा लगेगा खंडहर की तरह... जलेगा बरसात में भीगी लकड़ी की तरह... मांगेगा, न मिलेगी मौत, जिंदगी की तरह!..
रुखसत हुआ वो बाप से लेकर खुदा का नाम।
राह-ए-वफ़ा की मन्ज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम॥
मन्ज़ूर था जो माँ की ज़ियारत का इंतज़ाम।
दामन से अश्क पोंछ के दिल से किया कलाम॥!॥
रचनाकार - पं ब्रजनारायण ’चकबस्त’
लेबल: रामचरितमानस
Writer रामकृष्ण गौतम पर शुक्रवार, जुलाई 17, 2009
5 Responzes:
बड़ा सही चित्रण किया है उस प्रसंग का/
खूब लिखा है..
गौतम जी पंक्तियों के साथ कवि/शायर का नाम भी दे देते तो अच्छा होता . ये पंक्तियां पं. ब्रजनारायण ’चकबस्त’ की रचना ’रामायण का एक सीन’ से हैं .
बेहतर कहा है। मजा आ गया।
प्रियंकर जी,माफ़ी चाहता हूँ!
दरअसल इन लाइंस को
लिखते वक़्त मैं जल्दी में था
इसलिए मैं इन लाइंस के
रचनाकार पं ब्रजनारायण ’चकबस्त’
जी का नाम लिखना भूल गया था.
अभी लिख देता हूँ.
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