सच ही कहा गया है कि इंसान अपने मन का कैदी, मन का गुलाम होता है। किसी वस्तु या व्यक्ति या अन्य किसी चीज़ को पाने के लिए एक बच्चे की तरह मचल जाता है। Object कोई भी हो, उसके लिए Subject एक ही रहता है और वह Subject होता है "जो चाह लिया है उसे पाना है"। क्या पाना है यह हुआ Object और कैसे पाना है यह Subject हुआ। तो किसी भी चीज़ को चाह लेने के बाद बस पाना है और पाकर रहना है, यही उसका यानि मन का ध्येय बन जाता है। यह तो हुई "ऐकिक" प्रकार की गुलामी। अब बात आती है इंसानी मन की भावनाओं की; बात शुरू करता हूँ आज के परिवेश यानि Culture को लेकर! आज हम अपने चारों ओर देखते हैं कि पश्चिमी सभ्यता हम पर पूरी तरह हावी है। यह भी कह सकते हैं कि हमने इसे ख़ुद पर हावी होने दिया है। कुछ ऐसे भी इंसान हैं जो इसे हावी होने का कोई मौका ही नही देते , पर उनकी संख्या अँगुलियों पर है। हाँ! तो मुद्दे कि बात यह है कि आज का युवा अपने "मन" को एक ऐसे ढलान पर उतार देता है जो सीधे किसी "खूबसूरत लड़की" पर जाकर ख़त्म होता है। हमारे युवा मित्र ने एक लड़की पसंद कर ली और उसे इम्प्रेस करने में लग गए। बंधू कि किस्मत ने साथ दिया और लड़की ने भी उनको पसंद कर लिया। फोन पर बातें भी होने लगी। मिलने लगे और साथ-साथ घूमना-फिरना भी शुरू हो गया। बात बहुत आगे बढ़ गई और दिन-ब-दिन नजदीकियां भी बढ़ने लगी। भाई उस लड़की की यादों में खो गया। अब उसे उस लड़की के अलावा न दिखाई देता है और न ही कोई समझ में आता है। सारे रिश्ते-नाते, घर-परिवार एक तरफ़ और वह लड़की एक तरफ़। न जाने उस लड़की में ऐसा क्या है, जिसने उसे घर-परिवार तक को भूलने पर विवश कर दिया। खैर! जो भी हो पर हमारा यह युवा मित्र "प्यार" की जाल में फँस गया है। अब उसे सिर्फ़ वही लड़की चाहिए। वह उस लड़की को चाहने लगा है। इतना चाहने लगा है उसे सिर्फ़ उसी की चाहत है। यहाँ पर हमारे मित्र का Subject है वह लड़की और ऑब्जेक्ट है उसे पाना। फिर अचानक पता नही क्या हो जाता है ? जो लड़की हमारे युवा मित्र को घर-परिवार से भी बढ़कर लगने लगती है वाही अब उसके "मन" को नही भा रही है। वाह! भाई क्या बात है ? अब हमारे मित्र की वह "ऐकिक" प्रकार की गुलामी खत्म होने लगती है। अब वह जकड़ता जाता है "अनैक्षिक" गुलामी में। किसी ने पूछा अबे अचानक तुझे क्या हो गया? तो हमारा युवा मित्र बहुत ही उदासी से ज़वाब देता और कहता है यार! कल मैंने उसके सेल पर किसी लड़के का मेसेज देखा! मैसेज पढ़कर मेरा दिल रो पड़ा यार, ऐसा मैसेज था। बस फ़िर मैंने ठान लिया की अब न तो उससे बात करूंगा और न ही कोई मैसेज भेजूंगा। दिल तो नही मान रहा हमारे मित्र का, पर क्या करें। किसी लड़के का भाई की गर्लफ्रेंड के सेल पर मैसेज क्या देख लिया, होश उड़ गए। अब आप ही बताइए... ऐसा भला "प्यार" होता है क्या???
अब क्या होता है कि हमारे युवा मित्र चले थे लड़की को हासिल करने और उल्टे पैर लौट आए। इस वक़्त जगजीत सिंह जी का गाया हुआ ये ग़ज़ल खूब जमता है :
"घर से निकले थे हौसला करके।
लौट आए खुदा-खुदा करके॥"
शनिवार, जुलाई 18, 2009
घर से निकले थे हौसला करके...
Writer रामकृष्ण गौतम पर शनिवार, जुलाई 18, 2009
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3 Responzes:
subject और object तो फिट हैं, बस मैथड में जरा एक्सपर्ट एडवाईस की जरुरत है आपके मित्र को. आप किस दिन काम आओगे?
मित्र जो शेर आपने हेडिंग में लगाया उसके शायर राजेश रेड्डी हैं
घर से निकले थे हौसला करके
लौट आये खुदा खुदा करके ..............:)
वीनस केसरी
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