शुक्रवार, जुलाई 17, 2009

जवानी का बहिष्कार : "प्यार"

सूखी
गुलदस्ते सी
प्यार की नदी
****

व्यक्ति
संवेग सब
मशीन हो गए
जीवन के
सूत्र
सरेआम खो गए

****
और कुछ न कर पाई
यह नई सदी

****
वर्तमान ने
बदले
ऐसे कुछ पैंतरे
****

आशा
विश्वास
सभी पात से झरे

****
सपनों की
सर्द लाश
पीठ पर लदी।

3 Responzes:

Udan Tashtari ने कहा…

इतनी मायूसी..क्या हुआ भाई!!

ओम आर्य ने कहा…

itane gam ki shaakh ke pate gawaah ho rahe hai miya ......kyo???????

रामकृष्ण गौतम ने कहा…

कुछ ख़ास नहीं सर, बस यूँ ही मन की बात बाहर निकल आई.

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