बात उस समय की है जब मैं अपने ग्रेजुएशन के चौथे सेमेस्टर की परीक्षाएं दे रहा था. उस वक़्त मेरी तबियत काफी बिगड़ी हुई थी, इसलिए मेरी देखभाल के लिए मेरी माँ भी मेरे साथ ही थीं. उस दिन मेरा तीसरा या चौथा पेपर था. हम लोग एग्जाम हाल से पेपर देकर निकले. बारिश भी अपने पूरे शवाब पर था. ठीक उसी वक़्त मेरा शरीर गर्म होने लगा. मुझे काफी तेज़ बुखार हो चला था. ठण्ड भी इतनी लग रही थी मानो मैं कडाके की ठण्ड में बिना कपडों के खडा हूँ. दम निकला जा रहा था. मुझे बस यही चिंता सताए जा रही थी कि मैं घर कैसे पहुंचूंगा? इतने में ही मेरे एक अभिन्न और अज़ीज़ मित्र ने मुझे कांपते हुए देखा. वो मेरे पास आया और मेरा माथा छूने लगा. वो भी दंग रह गया. उसने कहा "राम" तुझे तो काफी तेज़ बुखार है. मैंने दबी जुबान से स्वीकृति दी. उसने झट ही अपना रेनकोट मुझे दे दिया और पहनने को कहा. मैंने कहा भी कि तुम क्या पहनोगे? उसने कहा अभी मुझसे ज्यादा इसकी ज़रूरत तुझे है. उसने बाईक स्टार्ट की, मुझे बैठने को कहा और तेजी से मेरे घर की ओर रुख किया. बारिश की बूंदों की हिमाकत बढती जा रही थी, लेकिन उसे उन बूंदों की परवाह नहीं थी. उसे परवाह थी तो सिर्फ "राम" की. करीब बीसेक मिनट में हम लोग मेरे घर पहुँच गए. माँ भी बेसब्री से मेरी राह ताक रही थी. उन्होंने जैसे ही हम दोनों को देखा. उनकी आँखों में नमी ने पनाह पा लिया. वो रोने लगीं. क्यों रोयीं..? मुझे देखकर..! नहीं...! वो रोयीं थीं "राम" और "ज्ञान" का "प्यार" देखकर. उन्होंने देखा कि कैसे "ज्ञान" ने "राम" की परवाह की..? कैसे "राम" की हालत देखकर "ज्ञान" ने खुद की फिक्र नहीं की और "राम" को सही सलामत घर पहुँचाया. सच कहता हूँ, उस दिन "ज्ञान" ने मुझे इस तरह से रेनकोट पहनाई थी की उतनी तेज़ बारिश में भी मैं ज़रा भी नहीं भीगा था. हम दोनों की हालत पर मेरी माँ ने गौर किया और "ज्ञान" का सिर पोंछते हुए उसे सीने से लगा लिया.
शुक्रवार, जुलाई 17, 2009
यह भी तो "प्यार" ही है न..!!!
लेबल: अज़ीज़ दोस्त, दोस्ती, प्यार
Writer रामकृष्ण गौतम पर शुक्रवार, जुलाई 17, 2009
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3 Responzes:
अच्छे और सच्चे दोस्त ऐसे ही होते हैं राम ..
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
जी हा! यह भी प्यार है या यू कहे : यही प्यार है.
प्रिय राम,
जिस संस्थान से तुम पढ़े हो वहां मैं भी पढ़ा करता था, बस तुमसे थोडा पहले वहां आ गया था. ज्ञान को भी मैं बखूबी जानता हूँ और तुम. तुम कभी पानी से हो जाते हो और कभी बर्फ से, तुम समझ सकते हो मैं क्या कहना चाहता हूँ. सहज होना बहुत कठिन है. है न! मुझे गर्व होता है मेरे अनुजों पर जो आज कितने भी व्यवसायिक हो जाएँ, लेकिन अपने व्यवसाय के बीच में अपने अग्रजों को याद रखते हैं. जहाँ तक बात है प्रेम की, तो हम सबका प्रेम एक-दुसरे के प्रति हमारा बीता हुआ वक़्त हमेशा याद दिलाता है. बस इस प्रेम को इसी तरह निरंतर बनाये रखो और बढाते रहो. जब कभी प्रेम की धरती सूखेगी, हम मुस्कुराकर बरसेंगे. ......ईश्वर से तुम्हारी उन्नति के लिए बहस जारी है, ताकि वो कोई पक्षपात न करे.
तुम्हारा
चक्रेश
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