मंगलवार, जुलाई 07, 2009

ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली...

ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली
ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली
वक़्त ने हमसे हमारी हर कहानी छीन ली।
पर्वतों से आ गई यूँ तो नदी मैदान में
पर उसी मैदान ने सारी रवानी छीन ली।
दौलतों ने आदमी से रूह उसकी छीनकर
आदमी से आदमी की ही निशानी छीन ली।
देखते ही देखते बेरोज़गारी ने यहाँ
नौजवानों से समूची नौजवानी छीन ली।
इस तरह से दोस्ती सबसे निभाई उम्र ने
पहले तो बचपन चुराया फिर जवानी छीन ली।
पर्वतों से आ गई यूँ तो नदी मैदान में
पर उसी मैदान ने सारी रवानी छीन ली।
दौलतों ने आदमी से रूह उसकी छीनकर
आदमी से आदमी की ही निशानी छीन ली।
देखते ही देखते बेरोज़गारी ने यहाँ
नौजवानों से समूची नौजवानी छीन ली।
इस तरह से दोस्ती सबसे निभाई उम्र ने
पहले तो बचपन चुराया फिर जवानी छीन ली।

4 Responzes:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत बढिया, बुरा न माने तो चार लाइने मैं भी कहू;

पथिक बनकर पाने को मंजिल हम चले थे जोश में
भीड़ ने राह में हमसे हमारी, चाल तूफानी छीन ली

जब सोचा, चलो बता दे हाल-ए-दिल अब किसी को
जिन्दगी ने तब तक हमसे हमारी जिंदगानी छीन ली

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

गलती के लिए क्षमा :
आख़िरी पंक्ति इस तरह से पढ़े :
मौत ने तब तक हमसे हमारी जिंदगानी छीन ली

Unknown ने कहा…

gazab kar diya ji...........

kya baat kah di...

bahut khoob !

Ram Krishna Gautam ने कहा…

Thnk You Godiyaal Saab...

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