ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली
ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली
वक़्त ने हमसे हमारी हर कहानी छीन ली।
पर्वतों से आ गई यूँ तो नदी मैदान में
पर उसी मैदान ने सारी रवानी छीन ली।
दौलतों ने आदमी से रूह उसकी छीनकर
आदमी से आदमी की ही निशानी छीन ली।
देखते ही देखते बेरोज़गारी ने यहाँ
नौजवानों से समूची नौजवानी छीन ली।
इस तरह से दोस्ती सबसे निभाई उम्र ने
पहले तो बचपन चुराया फिर जवानी छीन ली।
पर्वतों से आ गई यूँ तो नदी मैदान में
पर उसी मैदान ने सारी रवानी छीन ली।
दौलतों ने आदमी से रूह उसकी छीनकर
आदमी से आदमी की ही निशानी छीन ली।
देखते ही देखते बेरोज़गारी ने यहाँ
नौजवानों से समूची नौजवानी छीन ली।
इस तरह से दोस्ती सबसे निभाई उम्र ने
पहले तो बचपन चुराया फिर जवानी छीन ली।
मंगलवार, जुलाई 07, 2009
ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली...
Writer रामकृष्ण गौतम पर मंगलवार, जुलाई 07, 2009
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4 Responzes:
बहुत बढिया, बुरा न माने तो चार लाइने मैं भी कहू;
पथिक बनकर पाने को मंजिल हम चले थे जोश में
भीड़ ने राह में हमसे हमारी, चाल तूफानी छीन ली
जब सोचा, चलो बता दे हाल-ए-दिल अब किसी को
जिन्दगी ने तब तक हमसे हमारी जिंदगानी छीन ली
गलती के लिए क्षमा :
आख़िरी पंक्ति इस तरह से पढ़े :
मौत ने तब तक हमसे हमारी जिंदगानी छीन ली
gazab kar diya ji...........
kya baat kah di...
bahut khoob !
Thnk You Godiyaal Saab...
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