आरजू है वफ़ा करे कोई।
जी न चाहे तो क्या करे कोई॥
गर मर्ज़ हो दवा करे कोई।
मरने वाले का क्या करे कोई॥
कोसते हैं जले हुए क्या-क्या।
अपने हक़ में दुआ करे कोई॥
उन से सब अपनी-अपनी कहते हैं।
मेरा मतलब अदा करे कोई॥
तुम सरापा हो सूरत-ए-तस्वीर।
तुम से फिर बात क्या करे कोई॥
जिस में लाखों बरस की हूरें हों।
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई॥
बुधवार, जुलाई 15, 2009
आरजू है वफ़ा करे कोई...|||
Writer रामकृष्ण गौतम पर बुधवार, जुलाई 15, 2009
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5 Responzes:
गर मर्ज़ हो दवा करे कोई।
मरने वाले का क्या करे कोई॥
अच्छी -- बहुत अच्छी रचना.
बहुत ही सुन्दर ......यही कहने को जी चाहता है
bahut sunder
वाह ! बहुत उम्दा ..... क्या बात है.
गर मर्ज़ हो दवा करे कोई।
मरने वाले का क्या करे कोई॥
bahut khoob. aapke shabdo ka chunav bahut hi achha hai.
-Sheena
http://sheena-life-through-my-eyes.blogspot.com
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