एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं
कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ
सुन रहा हूँ के घर गया हूँ मैं
क्या बताऊँ के मर नहीं पाता
जीते जी जब से मर गया हूँ मैं
अब है बस अपना सामना दरपे
शहर किसी से गुज़र गया हूँ मैं
वो ही नाज़-ओ-अदा, वो ही घमजे
सर-ब-सर आप पर गया हूँ मैं
अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का
के यहाँ सब के सर गया हूँ मैं
कभी खुद तक पहुँच नहीं पाया
जब के वाँ उम्र भर गया हूँ मैं
तुम से जानां मिला हूँ जिस दिन से
बे-तरह, खुद से डर गया हूँ मैं...
रविवार, जून 28, 2009
सबके दिल से उतर गया हूँ मैं...
लेबल: अदा, चरित्र, जानिब, भावना
Writer रामकृष्ण गौतम पर रविवार, जून 28, 2009 1 Responzes
शनिवार, जून 27, 2009
मर्द-ए-बाख़ुदा...
लेबल: ग़र्क़-ए-बह्र-ए-फ़ना, बेनियाज़-ए-मुद्द'अ, मर्द-ए-बाख़ुदा
Writer रामकृष्ण गौतम पर शनिवार, जून 27, 2009 1 Responzes
रविवार, जून 21, 2009
प्रेम पिता का...
ईथर की तरह होता है
ज़रूर दिखाई देती होंगी नसीहतें
नुकीले पत्थरों-सी
दुनिया-भर के पिताओं की लम्बी कतार में
पता नहीं कौन-सा कितना करोड़वाँ नम्बर है मेरा
पर बच्चों के फूलोंवाले बग़ीचे की दुनिया में
तुम अव्वल हो पहली कतार में मेरे लिए
मुझे माफ़ करना मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझा था
मेरी छाया के तले ही सुरक्षित रंग-बिरंगी दुनिया होगी तुम्हारी
अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई हो
मैं ख़ुश हूँ सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाई..!!
Writer रामकृष्ण गौतम पर रविवार, जून 21, 2009 4 Responzes
FATHER'S डे...
Writer रामकृष्ण गौतम पर रविवार, जून 21, 2009 2 Responzes
शनिवार, जून 20, 2009
माँ.. तू जो नही है तो...
सर पे माँ बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिसके माँ बाप को रोते हुए मर जाना है
घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बन कर सामने माँ की दुआएँ आ गईं
मिट्टी लिपट—लिपट गई पैरों से इसलिए
तैयार हो के भी कभी हिजरत न कर सके
मुफ़्लिसी ! बच्चे को रोने नहीं देना वरना
एक आँसू भरे बाज़ार को खा जाएगा...
लेबल: आई लव यू मॉम, बच्चा, माँ बाप. ग़ज़ल, साया
Writer रामकृष्ण गौतम पर शनिवार, जून 20, 2009 2 Responzes
गुरुवार, जून 18, 2009
कुछ चुभ रहा है..!
लेबल: एहसास, चाहत, चुभन, भावनाएं, वो, हम
Writer रामकृष्ण गौतम पर गुरुवार, जून 18, 2009 1 Responzes
मंगलवार, जून 16, 2009
एक सपना.... नाम कमाना है....
कहते थे बेटे! तुम्हें नाम कमाना है...
पैसे तो सभी कमा लेते हैं...
कभी पैसा कमाने के लिए कोई ग़लत काम मत करना...
क्योंकि ग़लत काम करने से पैसा तो खूब मिलता है
पर नाम नही मिलता और तुम्हें नाम कमाना है...
Writer रामकृष्ण गौतम पर मंगलवार, जून 16, 2009 3 Responzes
सोमवार, जून 15, 2009
सभ्यता..!
Writer रामकृष्ण गौतम पर सोमवार, जून 15, 2009 6 Responzes
शुक्रवार, जून 12, 2009
माँ तुम हो या मेरा भ्रम है..?
माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
दिखती है जब कोई औरत..।
घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर
हाथों में डलिया लिए
आँचल से ढँके अपना सर
माँ मुझे तेरी याद आ जाती है..।
मेरी माँ की तरह
उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
क्यों, आख़िर क्यों ?
क्या पक्षियों का कलरव
झूठमूठ ही बहलाता है हमें ..?
लेबल: उमर, दलीय, प्लेटफार्म, भ्रम(झूटमूठ), माँ, याद
Writer रामकृष्ण गौतम पर शुक्रवार, जून 12, 2009 3 Responzes
अपने हाथों से पिलाया कीजिए...
रोज़ मैख़ाने में आया कीजिये
छोड़ भी दीजिये तकल्लुफ़ शेख़ जी
जब भी आयें पी के जाया कीजिये
ज़िंदगी भर फिर न उतेरेगा नशा
इन शराबों में नहाया कीजिये
ऐ हसीनों ये गुज़ारिश है मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिये
"हसरत जयपुरी"
लेबल: ग़म, तक़ल्लुफ़, मैखाना, शेखजी
Writer रामकृष्ण गौतम पर शुक्रवार, जून 12, 2009 8 Responzes
बुधवार, जून 10, 2009
उदासी के मंज़र...
उदासी के मंज़र मकानों में हैं
के रंगीनियाँ अब दुकानों में हैं।
मोहब्बत को मौसम ने आवाज़ दी
दिलों की पतंगें उड़ानों में हैं।
इन्हें अपने अंजाम का डर नहीं
कई चाहतें इम्तहानों में हैं।
न जाने किसे और छलनी करेंगें
कई तीर उनकी कमानों में हैं।
दिलों की जुदाई के नग़मे सभी
अधूरी पड़ी दास्तानों में हैं।
वहाँ जब गई रोशनी डर गई
वो वीरानियाँ आशियानों में हैं।
ज़ुबाँ वाले कुछ भी समझते नहीं
वो दुख दर्द जो बेज़ुबानों में हैं।
परिंदों की परवाज़ कायम रहे
कई ख़्वाब शामिल उड़ानों में हैं।
लेबल: इम्तिहानो, उड़ान, उदासी, ख्वाब, बेजुबान, मकानों, मोहब्बत, वीरानिया
Writer रामकृष्ण गौतम पर बुधवार, जून 10, 2009 3 Responzes
रविवार, जून 07, 2009
मेरा क्या जाता है..?
कभी कोई उसे मुसीबत में दिख भी जाता और उससे मदद
बरसात का मौसम था, बच्ची को जोरों से बुखार आया था।
वह बच्ची की बीमारी को दूर करने के लाख कोशिश कर चुका था।
सारे दांव फेल हो चुके थे। वह बहुत घबरा गया और
लेबल: ..?, क्या, जाता, मेरा, है
Writer रामकृष्ण गौतम पर रविवार, जून 07, 2009 2 Responzes
माँ...
अचानक एक पिचहत्तर साल के करीब की बुजुर्ग महाशय के पास आई और बोली -
बेटा! भोजन का समय हो गया है! महाशय ने ध्यान नही दिया...
बुजुर्ग ने फ़िर कहा - मेरे लाल! भोजन ठंडा हो रहा है!
महाशय गुस्से में आ गए और बोले - चुप भी कर ''माँ'',
तेरे आँख फूट गए हैं क्या?
देखती नही कल कोलेज में मेरा लेक्चर है...
"माँ" पर कविता लिख रहा हूँ..!!
लेबल: बेटा, माँ, माँ पर कविता, मेरे लाल
Writer रामकृष्ण गौतम पर रविवार, जून 07, 2009 2 Responzes
गुरुवार, जून 04, 2009
मैं कहाँ हूँ...?
मेरी साँसों में,
Writer रामकृष्ण गौतम पर गुरुवार, जून 04, 2009 2 Responzes
च्वाइस...
उसने मुझसे कहा आप आर्डर कीजिए।
मैंने कहा तुम आर्डर दो, मुझे आर्डर देना नहीं आता।
मेरी "च्वाइस" अच्छी नहीं है!!
उसने बड़े ही सहज भाव से उत्तर दिया-
मैं भी तो आपकी ही "च्वाइस" हूँ!!
Writer रामकृष्ण गौतम पर गुरुवार, जून 04, 2009 5 Responzes