इस जहाँ में मेरे सिवा पागल कई और भी हैं
खामोशियाँ हैं कहीं तो कहीं कहीं शोर भी हैं
मनचला या आवारा बन जाऊँ ये सोचता हूँ
लेकिन मेरे इस दिल में किसी और का ज़ोर भी है
तन्हाइयों से टूटना शायद मैंने सीखा ही नहीं
इसीलिए शायद मेरा ये दिल कठोर भी है
हर रोज़ उसी चिलमन का आड़ है नज़रों पर
वही मेरी दुल्हन है और वही मेरी चितचोर भी है
आ गले लगा लूं तुझे सभी ग़मों को भुलाकर
मैं जितना पागल हूँ मेरा दिल उतना कमज़ोर भी है
अहसास तेरी चाहत का मेरी धड़कनों में अब भी है
मगर तू क्यों समझेगी इसे तू तो मग़रूर भी है!
मंगलवार, नवंबर 03, 2009
इस जहाँ में मेरे सिवा पागल कई और भी हैं...
Writer रामकृष्ण गौतम पर मंगलवार, नवंबर 03, 2009
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3 Responzes:
Kya baat hai, Apne khud likha hai, relly belive me... I m speechless.
हम भी हैं ।
मुझे भी शामिल रखना!!
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