शनिवार, अक्टूबर 31, 2009

मुझे कुछ और कहना था...


वो सुनता तो मैं कुछ कहता, मुझे कुछ और कहना था।
वो पल को जो रुक जाता, मुझे कुछ और कहना था।


कहाँ उसने सुनी मेरी, सुनी भी अनसुनी कर दी।
उसे मालूम था इतना, मुझे कुछ और कहना था।


रवां था प्यार नस-नस में, बहुत क़ुर्बत थी आपस में।
उसे कुछ और सुनना था, मुझे कुछ और कहना था।


ग़लतफ़हमी ने बातों को बढ़ा डाला यूँही वरना
कहा कुछ था, वो कुछ समझा, मुझे कुछ और कहना था।
मुझे कुछ और कहना था...

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