शनिवार, फ़रवरी 28, 2009

जेहन में कौंधती एक सोच!

मैं तो लोगों के लिए

एक सीढ़ी हूँ

जिस पर पैर रखकर

उन्हें ऊपर पहुँचना है

तब सीढ़ी का क्या अधिकार

कि वह सोचे

कि किसने धीरे से पैर रखा

और कौन उसे

रौंदकर चला गया।

1 Responzes:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत गहरी बात कही. वाह!!

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