आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी
हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है ज़िन्दगी
भुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल
मौत के लम्हात से भी तल्ख़तर है ज़िन्दगी
डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल
ख़्वाब के साये में फिर भी बेख़बर है ज़िन्दगी
रोशनी की लाश से अब तक जिना करते रहे
ये वहम पाले हुए शम्सो-क़मर है ज़िन्दगी
दफ़्न होता है जहां आकर नई पीढ़ी का प्यार
शहर की गलियों का वो गन्दा असर है ज़िन्दगी।
रविवार, नवंबर 15, 2009
गुलमुहर है ज़िन्दगी...
लेबल: ग़ज़ल
Writer रामकृष्ण गौतम पर रविवार, नवंबर 15, 2009
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3 Responzes:
दफ़्न होता है जहां आकर नई पीढ़ी का प्यार
शहर की गलियों का वो गन्दा असर है ज़िन्दगी।
bahut khoob kaha..aur jo bhi kaha sach kaha
-Sheena
Ab smajh aya ki tum itne sad sad kyon rahte ho. Vaise ek baat batao ki kya tumhe yaad hai, tum aakhiri baar kab hanse the. Mere DEVDAAS!
Achhi Ghazal hai bhai!
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