सोमवार, अक्तूबर 05, 2009

किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी...

इन आँखों से दिन-रात बरसात होगी
अगर ज़िंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात होगी

मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफ़िर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

सदाओं को अल्फाज़ मिलने न पायें
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी

चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

अज़ल-ता-अब्द तक सफ़र ही सफ़र है
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी


रचनाकार: बशीर बद्र

1 Responzes:

आमीन ने कहा…

चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

बशीर बद्र subhan allah

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