रविवार, अगस्त 02, 2009

इस पराए शहर में...

कई साल पहले

अपने समय के

तमाम जवान लड़कों की तरह

मैं भी निकला था घर से

झोले में कुछ

काग़ज के टुकड़े डालकर

पर छोड़िए

इस कहानी में

कुछ भी नया नहीं है

आप बतलाइये

आप कब

और क्यों आए

इस पराये शहर में।॥?

1 Responzes:

M VERMA ने कहा…

"रामकृष्ण गौतम"... एक अधूरा ख्वाब!
आपके प्रोफाइल के ये शब्द --- भाई ! ख्वाब अधूरा ही होता है. उसे तो पूरा करना होता है.
अच्छी रचना लिख्नने का ख्वाब तो इस रचना के साथ मुझे तो पूरा होता हुआ नज़र आ रहा है.
लिखते रहिये सारे ख्वाब पूरे होंगे.
वैसे मै भी झोला उठा कर बनारस से दिल्ली आ गया था.

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