कई साल पहले
अपने समय के
तमाम जवान लड़कों की तरह
मैं भी निकला था घर से
झोले में कुछ
काग़ज के टुकड़े डालकर
पर छोड़िए
इस कहानी में
कुछ भी नया नहीं है
आप बतलाइये
आप कब
और क्यों आए
इस पराये शहर में।॥?
चरित्र मानव का महल की तरह... गिरेगा लगेगा खंडहर की तरह... जलेगा बरसात में भीगी लकड़ी की तरह... मांगेगा, न मिलेगी मौत, जिंदगी की तरह!..
कई साल पहले
अपने समय के
तमाम जवान लड़कों की तरह
मैं भी निकला था घर से
झोले में कुछ
काग़ज के टुकड़े डालकर
पर छोड़िए
इस कहानी में
कुछ भी नया नहीं है
आप बतलाइये
आप कब
और क्यों आए
इस पराये शहर में।॥?
Writer रामकृष्ण गौतम पर रविवार, अगस्त 02, 2009
1 Responzes:
"रामकृष्ण गौतम"... एक अधूरा ख्वाब!
आपके प्रोफाइल के ये शब्द --- भाई ! ख्वाब अधूरा ही होता है. उसे तो पूरा करना होता है.
अच्छी रचना लिख्नने का ख्वाब तो इस रचना के साथ मुझे तो पूरा होता हुआ नज़र आ रहा है.
लिखते रहिये सारे ख्वाब पूरे होंगे.
वैसे मै भी झोला उठा कर बनारस से दिल्ली आ गया था.
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