इस तरह हर ग़म भुलाया कीजिये
रोज़ मैख़ाने में आया कीजिये
छोड़ भी दीजिये तकल्लुफ़ शेख़ जी
जब भी आयें पी के जाया कीजिये
ज़िंदगी भर फिर न उतेरेगा नशा
इन शराबों में नहाया कीजिये
ऐ हसीनों ये गुज़ारिश है मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिये
"हसरत जयपुरी"
चरित्र मानव का महल की तरह... गिरेगा लगेगा खंडहर की तरह... जलेगा बरसात में भीगी लकड़ी की तरह... मांगेगा, न मिलेगी मौत, जिंदगी की तरह!..
लेबल: ग़म, तक़ल्लुफ़, मैखाना, शेखजी
Writer रामकृष्ण गौतम पर शुक्रवार, जून 12, 2009
8 Responzes:
Bahut Khoob.
kya baat hai !
waah
waah
is mashhur gazal ke saath iske wikhyaat shaayar kaa naam bhi likhna chahiye tha.
किसी की पंक्तियाँ है-
बेवक्त मार डालेंगी ये होश मंदियाँ।
जीने की आरजू है धोखे भी खाइये।।
ये कौन आधी रात को आया है मैकदे।
तौबा जनाबे शेख है तशरीफ लाइये।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
padhawane ke liye shukriya
Kya yah salaah striyon ke liye bhi hai????
Ha ha ha.....majaak kar rahi thi...
Bahut hi sundar rachna hai...Aabhar.
अलका जी माफ़ी चाहूँगा| शायर का नाम नहीं नहीं लिख पाया था| अब लिख दिया है|
रंजना जी! अब ये तो अपने-अपने स्वविवेक की बात है|
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