रविवार, अक्तूबर 26, 2008

अभिकर्ता जुगनू हुए..!

मोर पपिहा खेजडी, करता रहा तलाश ।धीरे धीरे मिट गया, बादल एक आकाश।.टपटप टपके टापरा, पिया गये परडेर ।बरखा से काली पडी, नजर कूप मुण्डेर।.पूरनमासी शरद की, अमी पयस बरसात ।अंक यामिनी गुलमुहर, झुलसा सारी रात।.असली सूरत लापता, मुह खोटे अनगीन।जैसा ओसर सामने, मुखडे पर धर लीन।.हेम रजत झंकार नित, गूंजे जाके कान।गाली सी वाको लगे, आरती अरु अजान।.अंधियारा मावस भरा, रोशन बिन्दु प्रहार।अभिकर्ता जुगनू हुए , चंदा करे व्यापार।

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