मंगलवार, दिसंबर 01, 2009

अरे! तुम कब आए...

सुबह के लगभग सवा पांच बज रहे थे, हवा की सरसराहट सीधे कानों से टकरा रही थी, पक्षियों का झुण्ड नीले आसमान की सुन्दरता बढ़ा रही थी, सूरज की लालिमा अपने चरम पर थी और आसपास के वातावरण में स्वर्णिम प्रकाश फ़ैल रहा था, ऊपर आसमान में नज़रें उठाकर देखने पर एसा लग रहा था मानो धरती और आकाश के बीच का दायरा ही ख़त्म हो गया है, सारा का सारा आकाश धरती की आगोश में नज़र आ रहा था, पेड़ों की पत्तियों की आवाज़ कानों के पर्दों से होकर सीधे ह्रदय में स्पंदन कर रही थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सूर्यदेव ने अभी-अभी ही आकाश में अपने घोड़े विचरण के लिए छोड़े हों...

ठीक उसी वक़्त केशव अपनी बहन और बहनोई के घर के गलियारे में दाखिल हुआ। अपनी बहन और बहनोई के मुखमंडल को देखने के लिए उत्साहित उसका मन, मन ही मन खुश हो रहा था और होगा भी क्यों नहीं, वो पूरे दो साल और सात महीनों के बाद अपनी कीर्ति और सचिन से मिलने जो वाला था। उसकी दूसरी ख़ुशी का राज़ तो पूछिए ही मत। उसकी इस ख़ुशी के आगे फिलहाल तो कोई भी दूसरी ख़ुशी टिक ही नहीं सकती और उसकी यह ख़ुशी है ही खुश होने लायक। आज वो अपने प्यारे भांजे से भी मिलेगा जो आज पूरे दो साल का हो गया है. इन्ही खुशियों को मन के एक कोने में संजोए केशव दबे क़दमों से धीरे-धीरे अपनी बहन के कमरे की ओर बढ़ रहा था।

उसके हाथ में एक झोला था जिसमे बहन और बहनोई के लिए कपडे और प्यारे भांजे के लिए मुंहदिखाई और जन्मदिन के तोहफे, खिलौने इत्यादि थे. मन में भांजे की सुन्दर सूरत की कल्पना और दिल में बहन से मिलने का उत्साह केशव को भीतर ही भीतर एक अनुपम ख़ुशी दे रहा था... वह ख़ुशी और उत्साह की इन्ही बातों को सोचते हुए अपनी बहन के कमरे के दरवाजे के सामने पहुंचा... वह दरवाज़े की कुण्डी बजाने ही वाला था कि... उसकी सारी कि सारी खुशी, सारा का सर उत्साह धुआं हो गया, एक ही पल में उस पर वज्रपात सा हो गया, हे! भगवान क्या मैंने इतनी खुशी और इतना उत्साह इसी दुरूह क्षण के लिए संजोया था, उसका ह्रदय एक अनकहे दर्द की चोट से कराह उठा।

उसने सुना कि उसकी प्यारी बहन कीर्ति अपने पति पर ज़ोरों से चिल्ला रही है और उससे भी जोर से उसका बहनोई सचिन दहाड़ मार रहा है. उनके बीच सुबह-सुबह छिड़े इस संवाद ने केशव की तमाम खुशियों को धता बता दिया। ऐसी स्थिति में केशव का मन व्याकुल हो उठा। इधर केशव के मन में कशमकश जारी था तो उधर उसकी बहन और बहनोई का संवाद... उसका बहनोई उसकी बहन से कह रहा था कि देखो तुम्हारे परिवार को तुम्हारी कोई चिता तो है नहीं, आज पूरे ढाई साल हो रहे हैं, किसी ने यह भी नहीं जानना चाहा कि हम मर गए या जिंदा हैं. कम से कम इस नन्हे को तो देखने कोई आ जाता. तुम्हारा भाई तो बस अपनी बीवी की पल्लू में ही छिपा रहता है. उसे तुम्हारी फिक्र क्यों होगी॥? इस पर कीर्ति ने ज़वाब दिया- खबरदार! जो मेरे पिता समान भाई और मेरी भाभी के बारे में कुछ बुरा-भला कहा तो! मैं फिर ये भूल जाउंगी कि आप मेरे पति हैं।

इन सब बातों ने केशव को जैसे प्राणहीन बना दिया था. उसका शरीर किसी पत्थर के स्तम्भ की तरह जड़ हो गया था लेकिन उसके कान अभी भी सतर्क थे, वह सचिन और कीर्ति दोनों के संवाद सुन रहा था. उन दोनों के संवाद ने केशव को उसके अतीत की और धकेल दिया जब नन्ही सी कीर्ति को महज़ चार साल की उम्र में उसके पिता और कुछ ही दिन बाद उसकी माँ भी चल बसीं. फिर कीर्ति की पूरी ज़वाबदारी केशव पर ही थी. उसे याद आ रहा था कि कैसे उसने दिन-रात, हर एक पल मेहनत-मजूरी करके कीर्ति का पेट भरा, उसे पढे और समाज में रहने लायक संस्कार दिए।

वह याद कर रहा था कि किस तरह शादी के बाद केशव ने अपनी पत्नी कृष्णा के साथ कड़ी मेहनत करते हुए कीर्ति का ध्यान रखा, उसने और उसकी पत्नी ने कीर्ति के पैर तक ज़मीन में न पड़ने दिए. किस तरह उन दोनों ने एक आदर्श माँ और पिता की भूमिका निभाई. कीर्ति को विदा करने के लिए केशव ने अपनी आजीविका का एकमात्र साधन अपनी एक एकड़ ज़मीन तक बेच डाली. इन सब कुरबानियों के बाद भी केशव ने कभी यह नहीं सोचा कि वह कितने कष्ट सह रहा है कीर्ति के लिए... इसके बावजूद भी वह कीर्ति की ख़ुशी के लिए ही सोचता रहा. दामाद को भी उसने वो हर वस्तु दी जो उसने मांग की थी।

कहने का मतलब है कि केशव ने वो हर जिम्मेदारी निभाई जो अपनी बेटी के लिए एक पिता करता है। केशव अपने अतीत में ही खोया हुआ था कि अचानक उसकी बहन चीखती हुई दरवाजे से बाहर की ओर भागी और उसका हाथ केशव के झोले पर तेजी से लगा, केशव का झोला ज़मीन पर गिरा और बच्चे के खिलौने टूटकर धरती बिखर गए। खिलौनों के टूटने की आवाज से उसका बहनोई बाहर आया, उसने केशव को एक कोने पर खड़ा पाया और केशव के कानों को चीरने वाली आवाज में बोला - अरे! तुम कब आए...

इन आंखों की मस्ती के...









जिनकी ये ख़ूबसूरत आँखें हैं, उन्हें आप सब बहुत बेहतरी से जानते हैं। अब जानना ये है कि क्या आप इन खूबसूरत आंखों की मलिका-ऐ-हुस्न का नाम बता पाते हैं या नही..?

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