बुधवार, जुलाई 29, 2009

कैसे कह दूँ कि वो पराया है...

जिसका साँसों ने गीत गाया है
कैसे कह दूँ कि वो पराया है
याद बे इख्तियार आया है
मेरी रग-रग में जो समाया है
कैसा रिश्ता है उस से क्या मालूम
जिसने ख्वाबों में भी रुलाया है
ऐसे सहरा से है गुज़र जिसमें
दूर तक पेड़ है न साया है
बंद पलकों में उसकी हूँ मैं 'ज़हीन'
उसने मुझको कहाँ छुपाया है

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