उदासी के मंज़र मकानों में हैं
के रंगीनियाँ अब दुकानों में हैं।
मोहब्बत को मौसम ने आवाज़ दी
दिलों की पतंगें उड़ानों में हैं।
इन्हें अपने अंजाम का डर नहीं
कई चाहतें इम्तहानों में हैं।
न जाने किसे और छलनी करेंगें
कई तीर उनकी कमानों में हैं।
दिलों की जुदाई के नग़मे सभी
अधूरी पड़ी दास्तानों में हैं।
वहाँ जब गई रोशनी डर गई
वो वीरानियाँ आशियानों में हैं।
ज़ुबाँ वाले कुछ भी समझते नहीं
वो दुख दर्द जो बेज़ुबानों में हैं।
परिंदों की परवाज़ कायम रहे
कई ख़्वाब शामिल उड़ानों में हैं।
3 Responzes:
bhai waah waah
marhaba.......................
kya baat hai....maza aa gaya.....
बहुत दिन बाद एक अच्छी नज्म पढ़ी -बहुत अच्छा लगा -बधाई
परिंदों की परवाज़ कायम रहे
कई ख़्वाब शामिल उड़ानों में हैं।
आपने बहुत ही अच्छी कह की गजल कही है
आप ने जो लिखा उसका भाव मुझे बहुत अच्छा लगा
आपका स्वागत है तरही मुशायरे में भाग लेने के लिए सुबीर जी के ब्लॉग सुबीर संवाद सेवा पर
जहाँ गजल की क्लास चलती है आप वहां जाइए आपको अच्छा लगेगा
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वीनस केसरी
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