मन की इक बात
मन ही में रह जाती है...
रोज़ कहता हूँ खुद से
कि
आज कहकर ही दम लूँगा...
झूठा साबित होता हूँ
जब...
चरित्र मानव का महल की तरह... गिरेगा लगेगा खंडहर की तरह... जलेगा बरसात में भीगी लकड़ी की तरह... मांगेगा, न मिलेगी मौत, जिंदगी की तरह!..
मन की इक बात
मन ही में रह जाती है...
रोज़ कहता हूँ खुद से
कि
आज कहकर ही दम लूँगा...
झूठा साबित होता हूँ
जब...
Writer रामकृष्ण गौतम पर सोमवार, मार्च 16, 2009
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वाह भाई वाह
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