मैं तो लोगों के लिए
एक सीढ़ी हूँ
जिस पर पैर रखकर
उन्हें ऊपर पहुँचना है
तब सीढ़ी का क्या अधिकार
कि वह सोचे
कि किसने धीरे से पैर रखा
और कौन उसे
रौंदकर चला गया।
चरित्र मानव का महल की तरह... गिरेगा लगेगा खंडहर की तरह... जलेगा बरसात में भीगी लकड़ी की तरह... मांगेगा, न मिलेगी मौत, जिंदगी की तरह!..
मैं तो लोगों के लिए
एक सीढ़ी हूँ
जिस पर पैर रखकर
उन्हें ऊपर पहुँचना है
तब सीढ़ी का क्या अधिकार
कि वह सोचे
कि किसने धीरे से पैर रखा
और कौन उसे
रौंदकर चला गया।
Writer रामकृष्ण गौतम पर शनिवार, फ़रवरी 28, 2009
1 Responzes:
बहुत गहरी बात कही. वाह!!
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