शनिवार, दिसंबर 26, 2009

कुछ लाइनें माता-पिता के लिए...




शुक्रवार की रात को मैं एक किताब पढ़ रहा था। उस किताब का नाम है `एक पुस्तक माता पिता के लिए...। किताब के लेखक हैं सोवियत शिक्षाशास्त्री अंतोन सेम्योनोविच माकारेंको (1888-1939)। अंतोन माकारेंकों ने अपनी इस किताब को पारवारिक लालन पालन को समिर्पत किया है। उसमें लिखीं कुछ बातों ने मेरे अंदर एक सोच पैदा कर दी और उसी का नतीज़ा है कि मैं उन बातों का उल्लेख इस ब्लॉग में कर रहा हूं...
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उन्होंने इस किताब में परिवार में बच्चों के भरण पोषण में आने वाली कठिनाइयों और उन पर काबू पाने के तरीकों का विश्लेषण किया है।

इस किताब में लिखी तमाम बातें बेहद गहराई से महसूस करते हुए लिखी गईं हैं। लेखक ने इन सब बातों को दिल की गहराइयों से एनालाइज किया है और बताया है कि माता-पिता को अपने बच्चे या बच्चों को पालने के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और किस तरह नेक माता-पिता सभी परेशानियों का हंसकर सामना करते हैं और अपने बच्चों को खुद से भी बेहतर बनाते हैं।

किताब के एक पैराग्राफ में माकारेंको लिखते हैं : यह नितांत आवश्यक है कि सभी माता-पिता अपने बच्चों को सुखी देखना चाहते हैं, लेकिन उनमें से सभी लोग यह नहीं समझ पाते कि सुख, सबसे पहले वैयक्तिक और सामाजिक के बीच सामंजस्य है और यह सामंजस्य एक दीर्घकालिक, कुशलतापूर्ण तथा कष्टसाध्य लालन-पालन के ज़रिए ही हासिल हो सकता है।

उन्होंने यह भी लिखा कि जो माता-पिता इस तथ्य से समझौता नहीं करना चाहते कि विवाह बंधन में बंधकर और मात्र एक ही बच्चे को जन्म देकर भी वे शिक्षक बन चुके हैं। उन माता-पिताओं का व्यापक रूप से प्रयुक्त बहाना `समय की कमी` होता है, लेकिन उनकी पसंद का दायरा काफ़ी संकीर्ण होता है। या तो वे हर कठिनाई के बावजूद अपने बच्चों का अच्छी तरह लालन पालन कर सकते हैं या बहाने की शक्ल में तरह तरह की `वस्तुगत कठिनाइयों` का हवाला देकर खराब ढंग से यह काम पूरा कर सकते हैं।

इसके बाद उन्होंने उल्लेख किया कि अनुभवहीन माता-पिता की सबसे बड़ी ग़लती यह होती है कि वे हर प्रकार के नैतिक प्रवचनों पर भरोसा करते हैं। ऐसा मालूम होता है कि इस तरह के माता-पिता बच्चों को हर समय एक ज़जीर में बांधे रखते हैं। उनके बच्चों का हर कदम, कोई भी हऱकत, सविस्तार अनुदेशों का विषय बन जाती है। इस यह कोई ता़ज्जुब की बात नहीं है कि बच्चे का स्वस्थ शरीर भी इस मौखिक दबाव को बर्दाश्त नहीं कर पाता और वैसे भी बच्चे तो हैं ही...

फलत: एक दिन उनका बच्चा `ज़ंजीर` तोड़ देता है और जिसका उसके माता-पिता को सर्वाधिक डर था, उसी बुरी सोहबत में जा फंसता है। माता और पिता दोनों भयाक्रांत हो उठते हैं। वे सहायता के लिए पुकारते हैं, वे मांग करते हैं कि उनके बच्चे को ``शिक्षा की ज़ंजीर`` से बांध दिया जाए, जिसके बिना वे बच्चे का लालन पालन नहीं कर सकते...

वे आगे लिखते हैं कि इस प्रकार के लालन पालन के लिए मुक्त समय की ज़रूरत होती है और साफ ज़ाहिर कि यह समय बर्बाद किया जाता है।

अंत में उन्होंने अपनी सारी की सारी विश्लेषण और पूरे अनुभव का प्रयोग करते हुए लिखा कि सफल पारिवारिक लालन पालन की सबसे अधिक महत्वपूर्ण शर्त है बच्चों की आवश्यकताओं का सही नियमन करने की माता-पिता की दक्षता..। बच्चे की हर सनक को उसकी ज़रूरत नहीं समझा जाना चाहिए। बच्चों को ऐसी सुख सुविधाएं पेश करना अननुज्ञेय है, जिन्हें माता-पिता कष्टसाध्य श्रम से प्राप्त करते हैं..।

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