बुधवार, अक्तूबर 07, 2009

न अब हौसला है न अब रस्ते हैं

रुखसत होकर बैठे हैं ऐसे
के खुशियाँ मिली हों ज़माने की जैसे,
नुमाइश भी कोई नहीं करने वाला
सूरत भी नहीं मेरी दीवाने के जैसे,
मैं चुपचाप सहमा हूँ बैठा कहीं पे
कोई भी नहीं है मुझे सुनने वाला,
सभी पूछते हैं हुआ क्या है तुझको
तेरी शक्ल क्यों है रुलाने के जैसे,
जब निकला था घर से बहुत हौसला था
के पा लूँगा मंजिल डगर चलते-चलते,
न अब हौसला है न अब रस्ते हैं
सफर भी लगे अब फसाने के जैसे!

3 Responzes:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत खूब रामकृष्ण!!

शरद कोकास ने कहा…

अच्छी नज़्म है यह ।

Shruti ने कहा…

bahut suder

-sheena

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