कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया ।
बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया ॥
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को ।
क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया ?
किस लिए जीते हैं हम, किसके लिए जीते हैं ?
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया ॥
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर, ऐ दोस्त !
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया ॥
रचनाकार: साहिर लुधियानवी |
2 Responzes:
अच्छी याद दिलाई भाई। कुछ अपनी भी कहें।
Bas Saab, hamara to esa hi hai. Jo bhi rachnayen pasand aa jati hain, jhta hi blog pe daal dete hain taki log bhi padh saken!
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