ज़िन्दगी को न बना दें वो सज़ा मेरे बाद
हौसला देना उन्हें मेरे ख़ुदा मेरे बाद
कौन घूंघट उठाएगा सितमगर कह के
और फिर किस से करेंगे वो हया मेरे बाद
हाथ उठते हुए उनके न देखेगा
किस के आने की करेंगे वो दुआ मेरे बाद
फिर ज़माना-ए-मुहब्बत की न पुरसिश होगी
रोएगी सिसकियाँ ले-ले के वफ़ा मेरे बाद
वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूं
उसका क्या जानिए, क्या हाल हुआ मेरे बाद
मंगलवार, सितंबर 22, 2009
कौन घूंघट उठाएगा सितमगर कह के..?
रचनाकार: नासिर काज़मी
लेबल: ग़ज़ल
Writer रामकृष्ण गौतम पर मंगलवार, सितंबर 22, 2009
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2 Responzes:
मेंहदी हसन साहब की आवाज़ में यह ग़ज़ल सुनी थी...पढ़कर वह स्वर कानों में तैर गया....बहुत बहुत आभार प्रेषित करने के लिए..
नासिर काज़मी की यह रचना पढ़वाने का आभार.
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