जब कभी धूप की शिद्दत ने सताया मुझको
याद आया बहुत एक पेड़ का साया मुझको
अब भी रौशन है तेरी याद से घर के कमरे
रोशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको
मेरी ख़्वाहिश थी कि मैं रौशनी बाँटूँ सबको
ज़िन्दगी तूने बहुत जल्द बुझाया मुझको
चाहने वालों ने कोशिश तो बहुत की लेकिन
खो गया मैं तो कोई ढूँढ न पाया मुझको
सख़्त हैरत में पड़ी मौत ये जुमला सुनकर
आ, अदा करना है साँसोंका किराया मुझको
शुक्रिया तेरा अदा करता हूँ जाते-जाते
ज़िन्दगी तूने बहुत रोज़ बचाया मुझको
रचनाकार: मुनव्वर राना
6 Responzes:
अच्छे विचारों के आलोक से बुराईयों का तम अवश्य दूर होता है।
इरशाद!!
वाह जिंदगी के सफ़र में ऐसे नज्मे बनती तो है लेकिन शब्द कुछ ही लोग दे पातें हैं....
सुन्दर रचना.....
मेरी ख़्वाहिश थी कि मैं रौशनी बाँटूँ सबको
ज़िन्दगी तूने बहुत जल्द बुझाया मुझको
--वाह!!
वाह साहब. बहुत उम्दा शेर. शुक्रिया ये ग़ज़ल पढ़वाने का.
बहुत बढिया लिखा है
मेरी ख़्वाहिश थी कि मैं रौशनी बाँटूँ सबको
ज़िन्दगी तूने बहुत जल्द बुझाया मुझको
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