गुरुवार, अगस्त 06, 2009

काश! ये न होता..??





क्यों किसी की याद रुलाती है बार-बार?
क्यों किसी की याद सताती है बार-बार?

जो साथ हो दिल में उमड़ती है ख्वाहिशें!
जो दूर हो तो पलकें भीगती हैं बार-बार?

परछाइयों में भी उसका ही चेहरा उभरता है!
सूरज की रौशनी में भी दिखता उसी का प्यार!

कुछ सोचकर अचानक सिहर जाता है ये दिल!
क्यों हर घडी तुम्ही पे आता है ये बार-बार?

हर बार कहता हूँ कि भुला दूंगा अब तुम्हें!
पर सच कहूं तो झूठ ही कहता हूँ बार-बार!

2 Responzes:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्दों में पिरोया है।बधाई।

अर्चना तिवारी ने कहा…

सुंदर रचना ..

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