गुरुवार, जुलाई 23, 2009

ज़िन्दगी क्या है..?

ज़िन्दगी फ़क़ीर बनके रह गई

साँस की लकीर बनके रह गई

ऐसा भी क्या गुनाह था

कि पीर-पीर...

द्रौपदी का चीर बनके रह गई॥!..?

LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

Blogspot Templates by Isnaini Dot Com. Powered by Blogger and Supported by Best Architectural Homes