एक महोदय काफी स्वार्थी प्रवृत्ति के थे।
कभी कोई उसे मुसीबत में दिख भी जाता और उससे मदद
कभी कोई उसे मुसीबत में दिख भी जाता और उससे मदद
की गुजारिश करता तो वह कहता "मेरा क्या जाता है"
और वहां से चला जाता। ऐसे ही सालों गुज़र गए पर
उसका तकिया कलाम वही रहा। एक दिन वह घर पर अपनी
ग्यारह साल की बच्ची के साथ अकेला था।
बरसात का मौसम था, बच्ची को जोरों से बुखार आया था।
वह बच्ची की बीमारी को दूर करने के लाख कोशिश कर चुका था।
सारे दांव फेल हो चुके थे। वह बहुत घबरा गया और
बरसात का मौसम था, बच्ची को जोरों से बुखार आया था।
वह बच्ची की बीमारी को दूर करने के लाख कोशिश कर चुका था।
सारे दांव फेल हो चुके थे। वह बहुत घबरा गया और
घबराहट की स्थिति में ही दौड़ा-दौड़ा
अपने पड़ोसी के घर गया। उसने गुजारिश की- गौतम जी!
मेरी बच्ची की हालत काफी ख़राब है कृपया अपनी कार
में हॉस्पिटल ले चलिए। गौतम जी ने बड़ी ही विनम्र और दया की
दृष्टी से उसकी ओर देखा और कहा "मेरा क्या जाता है"
पर तुम्हारी बच्ची की हालत काफी नाज़ुक है और
उसे हो गया तो "तुम्हारा बहुत कुछ चला जाएगा"।
यह कहकर गौतम जी ने अपनी कार निकाली
और बच्ची को हॉस्पिटल पहुँचाया।
2 Responzes:
waah waah !
kya ghumavdar post hai!
badhai_____________
इस पर भी कुछ लोगों की आँख नहीं खुलती
वीनस केसरी
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